प्रस्तुत है शन्ताति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०५४ वां सार -संक्षेप
¹ आनन्द प्रदान करने वाला
आनन्द प्रदान करने वाले ये सदाचार संप्रेषण हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं ताकि हमें समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का बोध हो हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें ये हमें चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय के लिए प्रेरित करते हैं हमें ध्यान दिलाते हैं कि हम केवल खाने पीने में मस्त न रहें केवल भौतिक उन्नति ही न करें हम देवासुर संग्राम में अपनी भूमिका स्पष्ट रखें
विषम परिस्थितियों में भी आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हनुमान जी की महती कृपा है
आइये प्रवेश करें आज की वेला में
हमारे यहां उपनिषदों में शिक्षा शिक्षण प्रशिक्षण प्रबोधन की अनेक विधियां हैं उसी में एक विधि है
आत्मसंलापात्मक विधि
इसे SOLILOQUY
(Ref OTHELLO )कह सकते हैं
अर्थात् मन में सोचते रहना
कठोपनिषद् में नचिकेता आत्मसंलाप कर रहा है
मेरे पिता (वाजस्रवा) ‘विश्वजित’ यज्ञ के विधान में मेरे संपोषण के मोह में ग्रस्त होकर उपयोगी गायों को बचाते हुए बूढ़ी और दूध न दे सकने वाली गायों का दान दे यज्ञ की औपचारिकता पूरी करना चाह रहे हैं यह तो अनर्थ कर रहे हैं
नचिकेता कहता है
आपको तो प्रियातिप्रिय वस्तु देनी चाहिए
पिता उसे यमराज को सौंपने के लिए कह देते हैं
यह कथा अत्यन्त रोचक और शिक्षाप्रद है
आज यमराज और जीवात्मा दूर दूर हो गए हैं लेकिन हमारा अतीत अध्यात्म का युग रहा है
अमरत्व की उपासना अद्भुत है
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह ।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते॥
शास्त्र के ये सिद्धान्त अत्यन्त बल देते हैं
इसके पश्चात् आचार्य जी ने BROCHURE की चर्चा की
इसमें सुझाव दिया कि
इस परिचयात्मक पत्र में भावनात्मक पुट भी हो
दीनदयाल विद्यालय का निर्माण भावनाओं की अभिव्यक्ति था
इस पापी संसार में पं दीनदयाल जी की हत्या दुष्टों ने कर दी थी तब यह निश्चय किया गया कि इस पापमोचन के लिए हम संकल्पवान् व्यक्तियों को तैयार करेंगे
इसके अतिरिक्त मोक्ष का पद क्या है भैया मोहन जी भैया मनीष जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें