18.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी/द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है  शमथ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी/द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५५ वां सार -संक्षेप

¹ परामर्शदाता



यह सदाचार केवल भाषाई शब्द नहीं 


यह जीवन का विश्वास सत्य का विग्रह है 

निखरा करता इससे मानवता का स्वरूप 

स्रष्टा का अद्भुत अनुपम एक अनुग्रह है


इन सदाचार संप्रेषणों का मूल आशय यही है कि हम भ्रष्ट जीवन से सचेत रहें भ्रष्टाचार को हम पनपने न दें शिष्टाचार का वरण करें 

अपने कर्तव्य, कर्म और विचार का विस्तार करें 

भिन्न भिन्न प्रपंचों से अप्रभावित रहते हुए कर्मशील बनें 

अपनी दिशा दृष्टि सुस्पष्ट रखें संगठित रहें 

कठिन कामों को करने के लिए उद्यत हों स्वार्थी न बनें पुरुषार्थी बनें

अपनेपन का विस्तार करते चलें माटी की परिपाटी की पहचान भी रखें सद्धर्म की मशाल जलाते रहें 

आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


जब व्यक्ति चिन्तन की गहराइयों में उतर जाता है तो उसे सब माटी ही लगता है आचार्य जी ने कुछ इसी तरह के भाव व्यक्त किए हैं 

(२७ अगस्त २०११ को लिखी कविता )

यह तन क्या है बस माटी 

का  सुन्दर सा एक खिलौना है 

पहने माटी ओढ़े माटी माटी का सुखद बिछौना है.......

आचार्य जी ने एक दूसरी कविता सुनाई 


पथभ्रष्ट कभी मंजिल पाने में हुए सफल?


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ जैन जी भैया अमित जी का नाम क्यों लिया तालाब सूखने पर क्या action लिया गया जानने के लिए सुनें