19.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५६ वां सार -संक्षेप


सृष्टि की सद्व्यवस्थाओं में सहयोग करने के अनेक उपाय हैं ये सदाचार संप्रेषण उन्हीं में एक उपाय है जो हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हैं मनुष्यत्व की अनुभूति करने पर मनुष्य बुराई को मिटाने अच्छे लोगों का सहयोग करने का संकल्प लेता है कदाचारों की संलिप्तता से बचता है ये संप्रेषण हमें कर्तव्यबोध से दूर न होने की प्रेरणा देते हैं क्योंकि कर्तव्यबोध से दूर होने पर समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं  इन संप्रेषणों से हमें परिस्थितियों से जूझने की क्षमता विकसित करने की प्रेरणा मिलती है 

आइये आत्मबोधोत्सव मनाने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में 


यदि कुंठाओं में ही सदैव हम विचार करते रहेंगे तो हमारे विचारों में गति तो होगी लेकिन वह हमें पीछे ही ढकेलेगी जब कि हम तो आगे बढ़ना चाहते हैं 

मानस के बाल कांड में 



एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥

संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥


एक बार त्रेता युग में शिव  महर्षि अगस्त्य (कुम्भ से जन्म लेने के कारण कुंभज )के पास गए।

रामकथा मुनिबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥


मुनिवर ने रामकथा विस्तार से सुनाई , जिसको शिव जी ने परम सुख मानकर सुना।

अद्भुत है रामकथा  जिसमें बहुत सारे संघर्ष वर्णित हैं प्रभु राम का स्वभाव अप्रतिम है विषम परिस्थितियों ने तुलसीदास जी ने  रामकथा लिखी 

उस समय की राजसत्ता भयावह थी ऐसे संकट के समय में ऐसी दिव्य रचना हमें आश्वस्त करती है कि निश्चित रूप से परमात्मा का कोई न कोई स्वरूप सदैव विद्यमान रहता है 

परमात्मा ने जिस प्रकार संसारी पुरुष की रचना की उसी प्रकार ज्ञान की रचना की  वेद इसीलिए अपौरुषेय कहलाए 

हमारा सनातन साहित्य अद्भुत है 


इसके अतिरिक्त हमारा आत्म कैसे विस्तार लेता है  बिजली से संबन्धित क्या प्रकरण था आदि जानने के लिए सुनें