21.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०५८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०५८ वां सार -संक्षेप


आज अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस है भारतवर्ष योग की उद्भव भूमि है भारत ऐसे अनेक भावों विचारों की उद्भव भूमि रहा है जिसे संपूर्ण विश्व अपनाता है 

संकट का समय हो उत्साह का समय हो कर्म अकर्म विकर्म का जहां भ्रम हो वहां हमें गीता पाठ करना चाहिए

सरल रूप में कथात्मक ढंग से यदि गीता को देखना हो तो श्री रामचरित मानस के रूप में एक अद्भुत ग्रंथ हमारे समक्ष है जिसमें लक्ष्मण -गीता, राम -गीता, मन्दोदरी -गीता हमारा मार्गदर्शन करती हैं   इनका पाठ कर यदि ये व्यवहार में  प्रकट हों तभी इनकी उपयोगिता सिद्ध होगी 

हम संसार -धर्म का निर्वाह करें कोई कार्य व्यवहार बुरा नहीं है मोह बुरा है 

गीता का दूसरा अध्याय संपूर्ण गीता का सार तत्त्व है 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ 

काम करना धर्म है फल की इच्छा धर्म नहीं है निर्लिप्त भाव से कर्म करते रहें 

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।


सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।


हे अर्जुन!आसक्ति को त्याग कर, सिद्धि और असिद्धि में समान भाव का होकर योग में स्थित हुए तुम कर्म करो। समत्व ही योग कहलाता है l 


सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी किस कार्यक्रम में जा रहे हैं भैया सौरभ जैन जी का नाम क्यों लिया 

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