प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०६० वां सार -संक्षेप
विद्यालय में जब हम अध्ययनरत थे तब से सदाचार वेला हमें लाभान्वित करती रही है
मानसिक रूप से इसमें उपस्थित होने पर इसके लाभ असीमित हो सकते हैं बस विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता है
बल बुद्धि विद्या आदि विभिन्न याचना के तत्त्व हमारी संस्कृति की एक विशेषता हैं बल बुद्धि विद्या के सामञ्जस्य से हमारे विचार उत्कृष्ट होंगे
व्यवहार सामञ्जस्यपूर्ण होगा
संसार की विविधताओं में भी एकता की अनुभूति होगी
हमारे विद्यालय के शिक्षकों ने चिन्तन मनन कर अपने को विद्यार्थी को मात्र पढ़ाने तक सीमित नहीं रखा अपितु उससे आत्मीयता भी प्रकट की उसके घर परिवेश की भी चिन्ता की
आचार्य जी ने बताया कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस शुद्ध सात्विक शाक्त शक्ति के उपासक थे शक्ति भक्ति दोनों जहां संयुत हो जाती हैं वह हनुमान जी का विग्रह बन जाता है और हनुमान जी शिवावतार हैं
शिव जी शौर्य भक्ति शक्ति आवेश उदारता सारल्य के प्रतीक हैं
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द की संस्था रामकृष्ण मिशन से भक्ति प्राप्त कर बूजी हनुमान जी की परम भक्त बन गईं
इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में विचारों का प्रसार हुआ
हम उन्हीं विचारों के वाहक हैं उन विचारों का संग्रह कर उनका विस्तार करना हमारा धर्म है
संसार में निशाचरों की कमी नहीं है जिनके कारण धरती बार बार व्याकुल होती है जो हमारे लिए मां है और राक्षसों निशाचरों के लिए भोग्या है इनके खिलाफ अकेले यदि हम हिम्मत नहीं जुटा सकते तो हिम्मत का एक पुंजीभूत रूप तैयार करें जिसे संगठन कहते हैं
भगवान् राम ने भी संगठन पर बल दिया था
भले लोग जब निराश हो जाते हैं तो भगवान् अवतार लेते हैं भले लोगों को उत्साहित करते हैं भले लोग बेचारे होते हैं नाकारा होते हैं इस कारण भले लोगों में से एक बनने के बजाय हमें शक्तिसम्पन्न बनने की आवश्यकता है
अपने भीतर ईश्वरत्व को जाग्रत करने की आवश्यकता है प्रेम शक्ति की अनुभूति है भगवान् राम को संपूर्ण धरती से प्रेम था लोगों से प्रेम था इस कारण वन वन भटके
रामत्व की अनुभूति करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रतापगढ़ की चर्चा क्यों की मानस के किस कांड पर ध्यान देने के लिए आचार्य जी ने कहा
भोजन कैसा हो जानने के लिए सुनें