24.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६१ वां सार -संक्षेप

 इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६१ वां सार -संक्षेप



प्रखर विद्वान ज्ञानी तत्वदर्शी हम मनीषी थे ,

अनोखे आत्मदर्शी तत्वखोजी हम तपस्वी थे। 

उपेक्षा की कभी हमने खडग क्षुर दण्ड   शूलों की ,

तभी पीढ़ी न कह पाती  ' कभी हम भी जयस्वी थे ' ।।

११ अप्रैल २०२२



हम भी अनुभूति करें और नई पीढ़ी को भी यह अनुभूति कराएं कि हम तपस्वी आत्मदर्शी जयस्वी तत्वखोजी मनीषी रहे हैं  अपने धर्म अपनी परम्परा अपनी यज्ञमयी संस्कृति अपनी भावमयी शिक्षा की उपेक्षा करने पर यह दुर्दशा हो गई है new generation नाच कूद में लगी है 

इस कारण हमें शिक्षा में सुधार करने की आवश्यकता है

कल लखनऊ में संपन्न हुई सफल बैठक में इसी पर चर्चा हुई 

वेद बोझ नहीं हैं वेद अर्थात् तत्त्व-ज्ञान 

अहं ब्रह्मास्मि आदि सूत्रों की व्याख्याएं संहिताओं में हैं ब्राह्मण ग्रंथों में विधि विधान हैं 

आरण्यक अनुसंधान और स्वाध्याय के ग्रंथ हैं

 उपनिषदों से हमें शिक्षा मिलती है गीता व्यवहार का ग्रंथ है ब्रह्मसूत्र तत्त्व चिन्तन का ग्रंथ है 

मानस तो और भी अद्भुत  कथात्मक आनन्दमय ग्रंथ है 

कुछ ऐसी परिस्थितियां रहीं हमारे ग्रंथागार भस्मीभूत कर दिए गए 

इस कारण हमें  शक्ति के साथ सामञ्जस्य बैठाकर शक्ति की अनुभूति करनी है शक्ति की केवल चर्चा नहीं करनी है

शक्ति केवल व्यायामशालाओं में ही नहीं आती वह शोधशालाओं और उपासना -गृहों में भी आती है 

शिक्षा में शक्ति का प्रवेश होना चाहिए 

शक्ति के बिना संसार शव है 

शिव शिव इसी कारण हैं कि वे शक्तिसम्पन्न हैं 

अपना शिवत्व शक्तिसम्पन्न बना रहे इसके लिए अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन व्यायाम आसन ध्यान धारणा खाद्याखाद्य विवेक आदि आवश्यक है 

राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्देश्य यही है New generation में केवल प्रदर्शन की भावना न हो 

वह शक्तिसम्पन्न बने जिससे दुष्ट भयभीत हों 

जो इन विचारों से सहमत हों उन्हें साथ लेकर चलें 

दंभ भय से दूर रहें 

हम अखंड भारत की कल्पना करते हैं अखंड भारत की परिकल्पना करना किसी को परेशान करना नहीं है लेकिन खुद भी परेशान नहीं होना भी है 

अखंड भारत हमारा उपास्य है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया मनीष जी भैया निखिल अवस्थी जी की चर्चा क्यों की जीवन की दुर्दशा क्या है श्री हरमेश जी को क्या अच्छा लग रहा है जानने के लिए सुनें