प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०६३ वां सार -संक्षेप
मनुष्य और मनुष्यत्व परमात्मा का सांसारिक वरदान है इसकी अनुभूति हमारे सनातन धर्म में बहुत विस्तार से हुई है परस्पर का संपर्क सम्बन्ध मनुष्य के लिए एक ईश्वरीय वरदान है जो इससे दूरी बनाते हैं वे अभिशप्त हैं
ध्यान धारणा समाधि का एकाकीपन अपना महत्त्व रखता है किन्तु कुंठा का एकाकीपन अत्यन्त घातक है ऐसे कुंठाग्रसित लोगों को संपर्क में लाना ही उचित उपचार है
परमात्मा हमारे देश पर कृपा करता ही रहता है बौद्ध धर्म की विकृतियों के कारण देश में विचित्र स्थितियां उत्पन्न हो गई थीं ऐसे में उनके समाधान के लिए आठवीं शताब्दी में भगवान् शंकराचार्य का जन्म होता है
संपूर्ण भारत का स्वरूप उन्हें दैवीय भाव से प्रभावित करता रहा
हिंदू धर्म की एकजुटता और व्यवस्था के लिए चार मठों की उन्होंने स्थापना कर डाली
इसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द का जन्म बिषम परिस्थितियों में होता है
बीच में भी अनेक महापुरुषों के अवतरण हुए
हम लोग इसी परम्परा का स्मरण करते हुए अपना कार्य व्यवहार करते हुए अपना रुझान समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी करने का प्रयास कर रहे हैं अपनी ही दीनदुनिया में मस्त रहना हमें नहीं भाता इसी कारण हमारा लक्ष्य भी
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
है
साथ ही संयम शौर्य शक्ति से संपन्न बनते हुए हम प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें संगठन का महत्त्व समझें समाज से भय भ्रम दूर करने का प्रयास करें दुष्ट -दलन की समार्थ्य रखें गद्दारों से सावधान रहें खाद्याखाद्य विवेक जाग्रत करें
अपने सनातन धर्म की रक्षा के प्रति सदैव सतर्क रहें
जो करें देश के लिए करें सपने भी देश के लिए सजाएं
जब हमारा देश शक्तिसम्पन्न साधनसंपन्न विवेकसम्पन्न बनेगा तो हमें भी प्रतिष्ठा मिलेगी
देश को अपना परिवार समझें आत्मदर्शन आत्मचिन्तन करें तो आत्मबोध होगा
आचार्य जी ने सितम्बर में होने जा रहे अधिवेशन के लिए एक गीत भी सुझाया
गीत इस प्रकार है
गांव गांव घर घर में संयम शौर्य शक्ति पहुंचाना है ,
प्रेम युक्ति से संगठना कर विजयमंत्र दुहराना है ।।
जो भी जहां कहीं रहता हो,
जो कुछ भी निज-हित करता हो ,
थोड़ा समय देश-हित देकर
जीवन को सरसाना है ।।
गांव गांव घर घर में ------
भारत मां हम सबकी मां है यह अनुभूति महत्वमयी ,
सेकुलर वाली तान निराली शुरू हुई है नयी नयी ।
भ्रम भय तर्क वितर्क वितंडा छोड़ लक्ष्य पर दृष्टि रहे ,
हिन्दुराष्ट्र के विजय घोष से नभ को आज गुंजाना है ।।
गांव गांव घर घर में-----
हिंदुदेश में हम-सब हिंदू जाति पांति आडंबर है ,
शक्ति संगठन के अभाव में दर दर उठा बवंडर है ,
प्रेम मंत्र संगठन तंत्र पर बद्धमूल विश्वास करें ,
जनजीवन से भ्रामकता को जड़ से दूर भगाना है ।।
गांव गांव घर घर में ----
जहां किसी को भय भासित हो उसके दाएं खड़े रहें ,
लोभ लाभ के प्रति आजीवन सभी तरह से कड़े रहें ,
भारत सेव्य और हम सेवक यही भाव आजन्म रहे ,
यही भाव जन जन के मन में हम सबको पहुंचाना है ।।
गांव गांव घर घर में ------
भारत की संस्कृति में गौरव गरिमा समता ममता है ,
समय आ पड़े तो अपने बल दुष्ट-दलन की क्षमता है ,
हम अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु सदैव सतर्क रहें ,
यही विचार भाव जन जन को हमको आज सिखाना है ।।
गांव गांव घर घर में--------
✍️ ओमशंकर त्रिपाठी
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पीयूष बंका १९९५ जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें