27.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६४ वां सार -संक्षेप

 सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है

कोई   चन्द्रगुप्त   गढ़ने  की  साध   अधूरी है


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६४ वां सार -संक्षेप


हम राष्ट्र -भक्त संपूर्ण विश्व की आस हैं हम भाव विचार क्रिया विश्वास शौर्य शक्ति संकल्प पराक्रम उत्साह उमंग  हैं हम खंडित भाग पाने के लिए संकल्पित हैं हमारी जिजीविषा अद्भुत हैं हम कहते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्


हम संकल्पों के उपासक हैं जो विकल्पों पर विचार नहीं करते हम मरण का उत्सव मनाते हैं जन्म की किलकारियों में भ्रमित नहीं होते



ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जिसमें आचार्य जी एक ललक लेकर नित्य अपनी ज्वाला धधकाते हुए हमें उत्साहित प्रेरित उमंगित संस्कारित कर रहे हैं 



दीनदयाल विद्यालय भावनाओं का मूर्त स्वरूप है यह पहले भी मूर्त स्वरूप था और आगे भी रहेगा इसी विद्यालय के हम पूर्व छात्र सितम्बर में राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं 



 हम राष्ट्रीय अधिवेशन देश और समाज के लिए कर रहे हैं अखंड भारत के लिए कर रहे हैं अविश्वासी मृत समाज में विश्वास के प्रसरण के लिए कर रहे हैं



आचार्य जी ने करगिल विजय पर एक बहुत अच्छी कविता शौर्य- स्तवन लिखी

प्रस्तुत है यह कविता




क्‍या कहा। करगिल कलम की नोंक से लिख दूँ


 घधकते शौर्य का लावा उठाकर पृष्ठ पर रख दूँ


कहाँ  संभव ।


....

अरे यह शौर्य का इतिहास है विश्वास जीवन का


अमरता का यशोगायन उमड़ता ज्वार यौवन का


इसे पढ़ते कुशीलव की गिरा अवरुद्ध हो जाती 

घुमड़ती भावना के छन्द वाणी कह नहीं पाती । |


किशोरों का अगम उत्साह जज़्वा मौत छूने का 

झपट बढ़ कर उठाया जो गरल काँपा सफीने का

नहीं विश्वास होता है सुकोमल अधखिली कलियाँ


किलक जिनकी न भूली हैं अभी तक गाँव की गलियाँ |


वही यम-द्वार पर दस्तक बजाते हैं खड़े हँसते 

विजय का ले अटल विश्वास अरि को जा रहे कसते

चढ़े जैसे शिखर "जय” बोल तो भूडोल सा आया

हिमानी वादियाँ काँपी घिरा फिर मौत का साया।

...

 हुआ संग्राम धरती-व्योम के धुर मध्य अलबेला

 किलकते दूध ने पावन लहू से फाग खुल खेला

बचाई आन भारत के मुकुट अवशेष की फिर से

 किया संकल्प खण्डित भाग पाने को अटल फिर से |


शपथ ली है हिमालय के शिखर पर शौर्य ने फिर से


बजाई दुंदुभी जय की मुखर हो धैर्य ने फिर. से


सुनी भेरी विजय की मस्त 'लरकाना' हुआ फिर से


जयस्वी हांक से आश्वस्त 'ननकाना” हुआ फिर से |



 लिया संकल्प छू माटी धरा गूँजी गगन गूंजा 

लहू से कर विजय अभिषेक हिमगिरि भाल को पूजा

 अटल संकल्प है भारत अखण्डित अब पुनः होगा

बना अवरोध जो भी राह में खण्डित पड़ा होगा।



चढ़ा सुविधा सलीबों पर सिसकता देश जोड़ूँगा 

अपावन बन्धनों को तोड़ चिन्तन राह मोड़ँगा

लचर कायर कपूतों के कुकर्मों को मिटाऊँगा 

कि विजयी मस्तकों पर चरण रज माँ की सजाऊँगा 


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आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम विकारों से दूर रहें खाद्याखाद्य पर ध्यान दें इसके अतिरिक्त आचार्य जी कायमगंज अपनी मोटरसाइकिल में किसे बैठाकर ले गए थे, अधिवेशन के लिए आ रहे सुझावों के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा 

परीक्षा परिणाम की किन स्मृतियों में आचार्य जी हमें ले गए  आदि जानने के लिए सुनें