सदा संयम नियम के नाम पर वैराग्य मत पालो,
कभी सुख शान्ति के बदले नहीं संघर्ष को टालो,
समस्या जगत भर में हर कदम पर ही समायी है ,
उसे दो-चार होकर ही हटाओ शक्ति भर घालो।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०६५ वां सार -संक्षेप
हमारे देश में हमारे ऋषियों ने जितना लेखन चिन्तन मनन किया है ऐसा विश्व में अन्यत्र कोई उदाहरण नहीं है लेकिन हमारा चिन्तन लेखन जब कर्म से दूर हो गया तो भयावह परिणाम सामने आया हम निराश हो गए और स्वार्थी भी हो गए लेकिन अद्भुत है हमारा देश कि जब भी लगा कि
हताशा ही हताशा व्याप्त है आग बुझ गई है तो आग फिर प्रज्वलित हो जाती है हम लोग उसी आग के प्रज्वलन की प्रक्रिया हैं हमें यह अनुभव करना चाहिए
जहां कहीं भी प्रकाश मद्धिम होता है हम उसे अपने प्रकाश से प्रकाशित कर देते हैं
हमारा लेखन चिन्तन कर्म में प्रवृत्त होना चाहिए हमें विचारपूर्वक बोलना चाहिए वाचिक व्यवहार भी अत्यन्त सशक्त व्यवहार होता है
मनुष्य का जीवन अद्भुत जीवन है धन्य भाग्य से प्राप्त होता है इसे प्राप्त कर लेने के बाद यदि संसार और संसारेतर गतिविधियों की हमें समझ आ जाती है तो यह अत्यन्त आनन्ददायक है
समस्याओं का समाधान हम स्वयं खोजें
यदि हमारी दृष्टि में भ्रम नहीं है तो हमें संसार गड्डमड्ड नहीं दिखता है यह तो एक व्यवस्थित व्यवस्था है
हमें जवानी भी नहीं भूलनी चाहिए जवानी का अर्थ है पराक्रम की अनुभूति, प्रणव का घोष
यह जीवन की ज्योति है और इसमें उम्र आड़े नहीं आनी चाहिए जवानी का अनुभव न होना अत्यन्त पीड़ादायक है
जवानी के अनोखे स्वप्न जब संकल्प बन जाते
फड़कते हैं सबल भुजदंड उन्नत भाल तन जाते
हमें जवानी की अनुभूति होनी ही चाहिए आज का युग -धर्म शक्ति उपासना है
हमें विलासपूर्ण जीवन से दूर रहना चाहिए हमें संघर्षों से विमुखता नहीं रखनी चाहिए हमें सधी हुई चालों से सचेत रहना चाहिए देशद्रोहियों की योजनाओं से भी सचेत रहना चाहिए हम जागरूक शिक्षक की भूमिका निभाएं हमें जनमत का जामा उतारना होगा
इसके अतिरिक्त भैया पुनीत श्रीवास्तव जी भैया वीरेन्द्र जी भैया गोपाल जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया
स्वार्थ क्यों आवश्यक है
जानने के लिए सुनें