प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०६६ वां सार -संक्षेप
हनुमान जी की महती कृपा है कि हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं ज्ञान में अग्रणी होने के बाद भी हनुमान जी अद्भुत भक्त हैं भगवान् राम हनुमान जी को रोक देते हैं कि तुम असहायों का आधार बने रहो तुम कहीं नहीं जाओ
हनुमान जी सदैव हमारे साथ हैं उनके भक्त होने के बाद भी हम भ्रमित रहें अज्ञानी रहें तो यह दुःखद है
अज्ञानी लोगों की इस संसार में भरमार है यही संसार का स्वरूप और स्वभाव है परमात्मा इस संसार की रचना अपनी लीला करने के लिए करता है उसका महामन करता है मनोरञ्जन करने के लिए
हमारे पास लघु मन है महामनस्वी परमात्मा हम जीवात्माओं की सृष्टि करता है
हम उसकी बनाई सृष्टि में विविध कार्यों में लिप्त रहते हैं कोई अपने को परोपकारी समझता है कोई अपने को उद्यमी आदि समझता है
चिन्तनशील गीता के दूसरे अध्याय को गीता का सार बताते हैं
इस सार को समझने के लिए हमें उसी प्रकार की बुद्धि विकसित करनी पड़ती है
गीता में मोहग्रसित अर्जुन कहते हैं
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।1.45।।
यह बड़े आश्चर्य और खेद का विषय है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करना ठान चुके हैं यह कि राज्य एवं सुख के लोभ से अपने स्वजनों को ही मारने के लिए सज्ज हैं
भगवान् कृष्ण समझाते रहते हैं वे कहते हैं
विषयों का चिन्तन करने वाले व्यक्ति की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना, कामना से क्रोध पैदा होता है। क्रोध के कारण सम्मोहन हो जाता है। सम्मोहन से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है।जब कि स्मृति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जिसके भ्रष्ट होने पर बुद्धि, जिसका अन्तिम तत्त्व विवेक है,का सर्वनाश हो जाता है और व्यक्ति का पतन हो जाता है।
(गीता २/६२)
जिस प्रकार अर्जुन भ्रमित थे उसी प्रकार हम भी भ्रमित रहते हैं
हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
ये अस्ताचल वाले देशों की जीवनशैली हमें व्यामोहित कर देती है
जब परमात्मा ज्ञान देता है तो ज्ञानी पुरुष परमात्मवत हो जाता है
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥2॥
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम विकारों को दूर करें शरीर शुद्ध करें ढोंगी न बनें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने गांव सरौंहां के निवासी भैया रौनक की चर्चा क्यों की भैया सौरभ राय भैया नीरज कुमार भैया अनिल महाजन का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें