30.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०६७ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त  लाभकारी, युग को जाग्रत सचेत करने की प्रेरणा देने वाले,मन और मस्तिष्क को पोषित करने वाले हैं हमें कर्तव्यशील विचारशील संयमशील बनने का उत्साह देने वाले हैं अपनी श्रवणेन्द्रिय को सात्विक बनाकर हमें इन्हें अवश्य सुनना चाहिए इन्हें सुनने से हमारे भीतर शक्ति आती है वेद भी सुने ही गए इसी कारण वेद श्रुति कहलाए

सुनने के बाद अत्यन्त ऊर्जामय भाव उत्पन्न होता है 

कर्म के माध्यम से ज्ञान की उपासना करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए संसार सागर है इसे समर भी कह सकते हैं सागर हो या समर हो दोनों पर विजय प्राप्त करना मनुष्य के लिए एक चुनौतीपूर्ण संकल्प है हमें परा और अपरा दोनों विद्याएं जाननी चाहिए  हमारा शरीर संसार है परिवार भी संसार है जो जितना भावुक होता है उसका संसार उतना ही विस्तृत हो जाता है उस विस्तृत संसार को वह अपने ढंग से चलाने का प्रयत्न करता है लेकिन यदि उसकी बुद्धि जाग्रत नहीं है तो वह उलझ जाता है

संतुलन बिगड़ जाता है 

शरीर हो परिवार हो संसार हो सारे संतुलन से चलते हैं 

आचार्य जी ने युग -चारण नामक अपनी रची एक कविता सुनाई 

उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं 


युग-चारण हूँ क्रान्तिकथा के लिये निमंत्रण देता हूँ

 और भोग की चिता जलाने का आमंत्रण देता हूँ। 


जहाँ दूध के लिये बिलखता बचपन हुचकी भरता हो, 

और बुढ़ापा बिना मौत के घुट-घुट भूखों मरता हो 

भरी जवानी बदहवास हो दुविधा के चौराहे पर

 शामत बन बैठी हो सत्ता हर गरीब हलवाह़े पर

 उस दुनिया को आग लगाने का आमंत्रण देता हूँ | ।१। | 

युग-चारण हूँ .............


जहाँ जनमते ही छाती पर बोझ कर्ज का भारी हो 

खुद॒दारी दर-बदर दीन, पर मस्त मगन मक्‍कारी हो 

जहाँ सुहाग दफन होता हो चाँदी के शमशानों में

 मर्यादा सिसकी भरती हो चकला बने मकानों में

 उस दुनिया के लिये लपट का खुला निमंत्रण देता हूँ । ।२। । 

 युग-चारण हूँ........



जहाँ सत्य गुमनाम नामवर झूठे चोर लफंगे हों,

 धर्माधीश चलाते चोरी चुपके काले धंधे हों

 न्याय दलालों के हाथों सत्ता गुण्डों की बंधक हो

 जनता के पीछे खाई हो

 आगे गहरा खन्‍दक हो

 उस दुनिया को स्वाहा करने का अभिमंत्रण देता हूँ। ।३।

  युग-चारण हूँ ...........

......

इसी कविता में आगे आचार्य जी ने कहा 


... उलझ- पुलझ मेधा बेसुध हो दौलतमंद झमेले में...


ऐसी गंद -गलीज फूंकने का आमन्त्रण देता हूं....


हमारे पास जितना प्रकाश है उस प्रकाश की उपासना करें हम बेचारगी की अनुभूति कतई न करें इसके लिए शारीरिक व्यायाम के साथ प्राणायाम भी करें 

बाहर की वायु भी शुद्ध रहे हम स्वयं भी आनन्दित रहें और अन्य को भी आनन्दित करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया अनिल महाजन जी भैया आकाश जी भैया सौरभ जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें