1.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६८ वां सार -संक्षेप

सांसारिक कार्यव्यवहार में लगे रहते हुए हम लोग सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने के लिए लालायित रहते हैं यह हनुमान जी की महती कृपा है उनका प्रसाद है प्रसाद पूर्णरूपेण आत्मसात् किया जाता है


हम इनके माध्यम से स्वयं  पढ़ें औऱ संसार को भी पढ़ाएं ऐसी अवस्था में हम जीवनमुक्त स्थिति में आ जाते हैं अर्थात् शरीर के रहते हुए भी मोक्ष का अनुभव कर लेना जीवन मुक्त अवस्था कहलाती है


उस व्यक्ति को अद्भुत अनुभूति होती है जिसको तत्त्व का साक्षात्कार हो जाता है अर्थात् कि हम कौन हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

यह अनुभूति जब अभिव्यक्ति में बदल जाती है तो वह दिव्य अत्यन्त प्रभावशाली साहित्य हो जाता है

निर्वाणषट्कम् में आता है...


मैं बिना किसी परिवर्तन के , बिना किसी आकार के हूँ 

मैं हर स्थान पर सभी वस्तुओं के आधार के रूप में और सभी इंद्रियों के पीछे उपस्थित हूँ ,

 न तो मैं किसी वस्तु से आसक्त होता हूँ , न ही किसी वस्तु से मुक्त होता हूँ मैं सदा शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ  मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ

ये अभिव्यक्तियां स्पष्ट कर रही हैं कि यह अनुभूति भगवान् शंकराचार्य को हुई 

हम लोग भगवान् शंकराचार्य के इन गुणों से प्रभावित होकर आनन्दित हो जाते हैं 

विद्यालयों में इस प्रकार के साहित्य की चर्चा अवश्य होनी चाहिए वहां मनुष्यत्व का अनुभव कराने वाली संस्कारमय शिक्षा दी जानी चाहिए 


विद्यालय का अर्थ है जहां शिक्षा के माध्यम से विद्या प्रदान की जाती है और विद्या प्राप्त की जाती है 

आचार्य जी ने प्रारब्ध कर्म की चर्चा की जो बहुत दिनों बाद भी प्रतिफलित हो सकता है याद करिये धृतराष्ट्र और भगवान् कृष्ण का संवाद 


तत्त्वज्ञान रूपी अग्नि संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण--तीनों कर्मों को भस्म कर देती है।

जीवनमुक्ति की दो अवस्थाएं हैं 

समाधि और उत्थान 

समाधिस्थ व्यक्ति संसार और समाज के संपर्क में नहीं रहता 

आचार्य जी ने उत्थान अवस्था को स्पष्ट किया और यह भी बताया कि इसका अभ्यास कठिन है 

मन और मस्तिष्क की शक्ति से हम शरीर को संवार सकते हैं क्योंकि शरीर हमारा मृत नहीं हुआ है काम कठिन है लेकिन संभव है 

आचार्य जी ने प्राणायाम और सही खानपान पर भी जोर दिया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अनिल महाजन के लिए क्या परामर्श दिया 

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