प्रस्तुत है अलङ्करिष्णु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 जून 2024 (जयेष्ठ मास का द्वितीय मंगलवार )का सदाचार सम्प्रेषण
१०४१ वां सार -संक्षेप
¹ सजाने की क्रिया में कुशल
हमारे विचारशील ऋषियों ने शब्द को ब्रह्म माना है शब्द में शक्ति है शब्द में स्वर है और स्वर में बल होता है
हमारे ऋषियों ने वेद को पुरुष कहा है और जब उसे पुरुष कहा तो उसके अंग भी अनिवार्य हैं इस प्रकार शिक्षा को नासिका कहा गया है
नासिका शरीर की शोभा तो है ही यह प्राणों के संचालन का आधार भी है शिक्षा का वास्तविक अर्थ संस्कार है विचार संयम स्वाध्याय साधना है शिक्षा का अर्थ है सिद्धि के तत्त्व को समझना उसी शिक्षा का आधार लेकर हम शिक्षार्थी आचार्य जी से सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं जिनसे हम शक्ति सामर्थ्य कर्मकौशल प्राप्त करते हैं हमारे राष्ट्र के प्रति प्रेम में वृद्धि होती है
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इन संप्रेषणों से जो हमें संकेत रूप में प्राप्त होता है उसका विस्तार हम करें
शैक्षिक प्रयोगों के लिए हम उन्नाव के अपने विद्यालय सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज को चुन सकते हैं शिक्षा एक गम्भीर विषय है इस पर चर्चा होनी ही चाहिए
आज मतगणना है आज लोकतन्त्र पर्व का समापन दिवस है
भगवान् राम के जन्म
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥ 190॥
की तरह योग, लग्न, ग्रह, वार,तिथि सब अनुकूल लग रहे हैं
आचार्य जी ने स्वस्थ लोकतन्त्र को स्पष्ट किया
ठगी करके लोभ लालच के द्वारा चुनाव जीतना अच्छा नहीं होता जनमानस यदि शिक्षित है तो कभी ठगी का शिकार नहीं होगा
हम मात्र पूजा पाठ कर निश्चिन्त रहने में विश्वास नहीं रखते हैं हम पूजा पाठ राष्ट्र के लिए करते हैं हम अपने राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने का प्रतिदिन सामर्थ्य चाहते हैं
देवताओं के साथ दानवों का भी अस्तित्व है तुलसीदास जी कहते हैं
देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥
देवता, दानव , मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गंधर्व, किन्नर एवं निशाचर सभी को मैं प्रणाम करता हूँ। अब सब मुझ पर कृपा करें
आचार्य जी ने राम नाम के जप का महत्त्व बताया राम का नाम विश्वासपूर्वक लें आचार्य जी ने बताया विश्वास में बहुत बल होता है यही आत्मविश्वास में परिवर्तित हो जाता है अविश्वासी व्यक्ति भ्रमित रहता है आचार्य जी ने विश्वासी अविश्वासी वाला पेड़ से कूदने वाला प्रसंग बताया
इसके अतिरिक्त
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