5.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है गुण्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४२ वां सार -संक्षेप

¹ गुणों से युक्त



हम जागरूक लोग अपने अपने स्थान पर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए यदि राष्ट्रोन्मुखी जीवन जिएंगे तो राष्ट्र का विकास रुकेगा नहीं और विश्व में अपनी साख कम नहीं होगी

 क्योंकि  भारत का नेतृत्व जिसके हाथ में है वह गुण्य,धैर्यशाली, समझदार, राजनैतिक दृष्टि से चतुर, व्यावहारिक बुद्धियुक्त और सुयोग्य है

हम चाहते भी यही हैं कि हमारा राष्ट्र वैभवशाली बने 

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्

जो हमारे राष्ट्र के साथ है वह हमारा अपना है जो राष्ट्र के विरुद्ध है वह पराया है यही भाव हम श्री राम के चरित्र से अपने भीतर प्रवेश कराते हैं 

हम सहज कर्म करते चलें 

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्। सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:॥ १८/४८

उतार चढ़ाव आते रहते हैं 


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥ 


सर्वत्र जिसकी बुद्धि आसक्तिरहित है, जिसने शरीर को अपने वश में कर रखा है, जो स्पृहा से रहित है, वह व्यक्ति सांख्ययोग के द्वारा नैष्कर्म्य-सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।


संसार के कार्य व्यवहार तो हम करें लेकिन उनमें लिप्त न हों 

आचार्य जी ने कल ४ जून को आये चुनाव परिणाम की चर्चा करते हुए यह  भी बताया कि उत्तर प्रदेश के संगठन में कुछ लोभी लालची लोगों के प्रविष्ट होने से ऐसा परिणाम आया

ऐसे में हम संवेदनशील लोगों का धैर्य बना रहे इसके लिए  आत्म अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन जाता है 

वाणी जब भाव बनकर भीतर प्रविष्ट होती है तो आनन्द की ऊर्मियां उठने लगती हैं 


न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:


न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥3॥


न मुझे घृणा है, न लगाव , न मुझे लोभ है, न मोह

न अभिमान है, न ईर्ष्या

मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं

मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

हमारा आनन्द लगातार बना रहे इसका प्रयत्न हम सब करें 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि संन्यास में भी मोक्ष की कामना रहती है संसार में हैं तो कामना तो रहेगी ही जब वह भावना के रूप में रहती है तो ऊपर उठेगी ही वासना के रूप में हानि पहुंचाती है 

सिद्धि प्राप्त होने पर प्रदर्शन न करें यह साधना में बाधक है 

अब हम अपने राष्ट्रीय अधिवेशन पर ध्यान दें योजनाएं बनाएं यात्राएं करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया अरविन्द जी  भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया धन्ना भगत की चर्चा किस संदर्भ में आई जानने के लिए सुनें