8.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पृथु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४५ वां सार -संक्षेप

¹ महत्त्वपूर्ण



कर्मशीलता अनिवार्य है



अत्यन्त महत्त्वपूर्ण इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से  भावसम्पन्न कर्मयोद्धा आचार्य जी हमें परामर्श देते हैं कि हम आत्मशोध अवश्य करें केवल परिस्थितियों से ही आप्लावित न हों अपने लिए भी समय निकालें भय भ्रम से दूर रहें 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  का भाव अद्भुत है 


आचार्य जी  नित्य प्रयास कर रहे हैं कि हम अत्यन्त संवेदनशील चिन्तनशील राष्ट्र -भक्त कर्मशील भी बनें हमें कर्मशीलता में बिना संशय के उद्यत होना चाहिए क्योंकि प्रायः यही होता है कि चिन्तनशील व्यक्ति कर्मशील नहीं होता

वह अपने में ही मस्त रहता है 

 कर्मशीलता से दूर के सुविधाभोगी प्रवचनकर्ता, chalk घिसने वाला master आदि  उदाहरण हैं 

किन्तु आचार्य जी ने मात्र शिक्षक का ही दायित्व पर्याप्त नहीं समझा कर्मशीलता के उनके अनेक उदाहरणों से हम परिचित हैं 

आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया कि किस प्रकार रामजन्मभूमि आंदोलन 

के समय लखनऊ में अपनी कर्मशीलता का परिचय उन्होंने दिया था

भारत के इतिहास में कर्मशीलता के  अनेक उदाहरण हैं अस्सी वर्ष की अवस्था में वीर कुंवर सिंह  ने युद्ध किया चार बेटे खोने के बाद भी गुरुगोविन्द सिंह जूझते रहे

भारतवर्ष संपूर्ण विश्व के विद्रूप रूपों से संघर्ष करने में सदैव सक्षम रहा है रह रहा है और आगे भी रहेगा 


प्रभंजन² कभी भी संदेश देकर के नहीं आता 

किसी भी भांति का अवरोध उसको टुक नहीं भाता 

मगर हम हैं सदा अवरोध ही बनते रहे उसके

यही उसका हमारा जन्म जन्मों का रहा नाता

² तूफान

यह उनको समझाने की आवश्यकता है जो सुविधाओं में बैठे उपदेश करते रहते हैं 

ऐसा ही उपदेश अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण को देने लगा 

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो


नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।


विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं


न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्।।11.31।।


अर्जुन कहते हैं 

कृपया मुझे यह बताइये कि  इतने उग्ररूप वाले आप  हैं कौन ? हे देवों में श्रेष्ठ ! आपको नमस्कार 

 आप प्रसन्न हो जाएं  मैं तत्त्व से जानना चाहता हूँ और उसका कारण यह है कि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं जानता हूं ।

तो 

श्री भगवान् कहते हैं 


कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो


लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।


ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे


येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32।

 मैं सारे लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगों का संहार करने के लिए ही यहाँ आया हूँ। तुम्हारे विपक्ष में जो योद्धा खड़े हैं  वे सभी तुम्हारे युद्ध किये  बिना भी नहीं रहेंगे।

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


आचार्य जी ने कहा कि राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए  निष्क्रियता त्यागनी होगी परिश्रम करना होगा पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की भी आवश्यकता होगी 

इससे हमें यश की तो प्राप्ति होगी ही सुख शान्ति भी मिलेगी 

धर्म की संस्थापना आवश्यक है अपनी अपनी कर्म -ज्योति बुझने न दें संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने का अपना संकल्प न भूलें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वैभव सचान जी का नाम क्यों लिया किन्ही शरद मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें