9.6.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 जून 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०४६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पुण्यकर्मन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 जून 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०४६ वां सार -संक्षेप

¹स्तुत्य कार्यों को करने वाला

स्तुत्य कार्यों की एक लम्बी सूची है आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम सनातन जीवन के प्रति विश्वास  में वृद्धि करें शुद्ध अध्यात्म बोध की अनुभूति करें अपनों के प्रति विश्वास करें अपने पूर्वजों के प्रति गर्व की अनुभूति करें

सितम्बर में हम लोग राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं जिसके लिए हम लोग अत्यन्त उत्साहित हैं और सुस्पष्ट दिशा में आगे बढ़ रहे हैं 

योजनाएं बना रहे हैं 

अधिवेशन में हम शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा पर चर्चा करने जा रहे हैं जिसके लिए अभी से तैयारी प्रारम्भ होनी चाहिए 

शिक्षा अर्थात् संस्कार 

शिक्षा तो जन्म के पूर्व से ही प्रारम्भ हो जाती है 

मां प्रथम शिक्षिका है 

हमें इसकी  चिन्ता करनी है कि मां का पालन पोषण किस प्रकार हुआ है वर्तमान में जो बेटियां हैं वही भविष्य की माताएं हैं बेटे भारत के भविष्य के कर्णधार हैं

उन बेटे बेटियों को संस्कारित करने की आवश्यकता है 

परिवार के संस्कार को शास्त्रीय पद्धति से व्यावहारिक रूप में किस प्रकार संयुत किया जाए इस पर चिन्तन आवश्यक है  पूजा पाठ भोजन आदि  शिक्षा के विषय हैं 

शिक्षा में मात्र पाठ्यक्रम ही नहीं आता है 

स्वास्थ्य का अर्थ GYM जाना ही नहीं है 

जो मन से व्याकुल है वह स्वस्थ नहीं है स्वस्थ व्यक्ति को अपने शरीर का भान ही नहीं रहता 

शक्तिमत्ता शरीर का स्वभाव होना चाहिए

 इसी प्रकार स्वावलंबन 

और सुरक्षा के विषय में आचार्य जी ने विचार दिए 

सुरक्षा में बाहुबल आत्मबल संगठन -बल आता है हमें आवश्यक अस्त्र शस्त्र चलाने का कौशल भी आना चाहिए 

इन सबका विस्तार हो सकता है इसके लिए चिन्तक विचारक बैठकें करें उन बैठकों से जो सार निकलेगा उसका  अधिवेशन में उल्लेख होगा



भाव की भाषा जहां व्यवहार के पथ पर चली है

और सात्विक शक्ति के चैतन्य की झंकृति मिली है

वहीं सन्निधि का अनोखा प्रेममय संबल मिला है 

सहज प्रेमी साथियों का हर तरह का बल मिला है


इसी बल को ज्ञानियों ने संगठन का नाम देकर

और मानव को विधाता ने यशस्वी काम देकर

जगत के झंझा झकोरों पर विजय का पथ दिखाया

और मानव को मनन चिन्तन भरा जीवन सुझाया


इस समय बहुत सी समस्याएं हमारे सामने हैं आचार्य जी ने इन्हीं समस्याओं पर आधारित अपनी एक कविता सुनाई


हमारी भाषा संगठनात्मक रहे कर्म उत्साहपूर्ण रहें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बृहस्पतिवार को होने वाली किस बैठक की चर्चा की जानने के लिए सुनें