प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०७७ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से अत्यन्त मूल्यवान स्वाध्याय और चिन्तन से ओतप्रोत आचार्य जी नित्य हमें जाग्रत उत्साहित उत्थित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है
आचार्य जी द्वारा भावों को संप्रेषित करने का प्रभाव हमारे ऊपर पड़ रहा है
हम अपने मन का मालिन्य दूर भगाएं , दंभ दूर करें,उत्फुल्लता उत्साह से लबरेज रहें
हमारी कल्पना में समाज स्वदेश स्वधर्म रहे
यह प्रयास आचार्य जी करते हैं
इस समय समस्याएं गम्भीर हैं इन समस्याओं के समाधान हेतु हमारा एक दायित्व बनता है हम निश्चिन्त नहीं रह सकते प्रत्यूह डालने में सदैव तत्पर रहने वाले दुष्टों को सबक सिखाने के लिए हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को जानना होगा इस कारण शिक्षकत्व महत्त्वपूर्ण हो जाता है
हम सभी लोग किसी न किसी रूप में शिक्षक हैं
हम सभी में शिक्षकत्व का अंकुर भीतर अवस्थित है
इस कारण अपने शिक्षकत्व को किसी भी तरह की परिस्थितियों में हमें जाग्रत रखना चाहिए
हमें नियमित रूप से मानसिक साधना करनी चाहिए और इसमें सातत्य रहना चाहिए
अपने अध्ययन अध्यापन की साधना गहन करें
नित्य प्राणायाम, ध्यान,
दैनन्दिनी लेखन अवश्य करें
शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता
हमें शिक्षकत्व की पूजा करनी चाहिए
बुद्धिवादी समाज के भय और भ्रम को दूर करने की आवश्यकता है क्योंकि
भय और भ्रम सभी के लिए घातक है
हम सही प्रयास करेंगे तो परिणाम भी अच्छा आयेगा
समाज परिणाम की पूजा करता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि अपना विद्यालय जब प्रारम्भ हुआ तो सेवा पूजा साधना के लिए शिक्षक आये पद प्रतिष्ठा के लिए नहीं उनमें
भावना प्रमुख थी उनमें
यशस्विता का स्वार्थ था
आचार्य जी ने पुस्तकों को पार्षद के रूप में कैसे परिभाषित किया, उन्नाव वाले अपने विद्यालय की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें