प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०७८ वां* सार -संक्षेप
शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा युगभारती के चार आयाम हैं इन पर चिन्तन करने के लिए इन्हें पुनर्विश्लेषित करने के लिए हमारे सामने भूमिका स्पष्ट है
अस्ताचल देशों के कारण हम व्यामोहित हो गए थे मैकाले आदि ने जान लिया था कि वैदिक ज्ञान अपार है अतुलनीय है इसी वैदिक ज्ञान को प्राप्त कर भारत के लोग अमरत्व के उपासक और विश्वासी हैं इस कारण इन्हें व्यामोहित करना आवश्यक है आचार्य जी ने कुछ प्रसंग बताए कि कैसे मैकाले ने अपने उद्देश्य में सफलता पाने का प्रयास किया मैक्समूलर का उद्देश्य भी विद्वेषपूर्ण रहा उसने वेदों को निकृष्ट बताने का प्रयास किया ये लोग अपने प्रयसों में सफल हुए अपनी कर्मठता को तिलाञ्जलि देकर हमें सुविधापूर्वक जीवन जीने की आदत पड़ गई, स्वावलम्बी बनने की चाह समाप्त हो गई
अब परिवर्तन का समय है इसके लिए शिक्षा में सुधार आवश्यक है विद्यालय पाठ्यक्रम शिक्षक आदि में परिवर्तन आवश्यक है
वैदिक ज्ञान का प्रवेश पाठ्यक्रम में जरूरी है
हम अपने को केन्द्रित कर लेते हैं शासन सत्ता के परिप्रेक्ष्य में प्रशंसा और निन्दा करने में
जब कि आत्मचिन्तन आत्ममन्थन आत्मोत्थान आवश्यक है
हमारा धार्मिक चिन्तन इङ्गित करता है कि हर प्रभात हमारे जीवन का प्रभात होता है जीवन सतत है सतत जीवन के लिए विद्या और अविद्या दोनों को जानने की आवश्यकता है मरणधर्मा संसार में सांसारिकता के साथ अमरत्व का भी ध्यान आवश्यक है उस अमरत्व के लिए प्रयास भी हम करें जिसके लिए अध्ययन स्वाध्याय आवश्यक है फिर हमें प्रपंच सताएंगे नहीं
प्राणायाम ध्यान धारणा दैनन्दिनी लेखन उत्साह प्रदान करेगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रीकृष्ण देव जी, केशवचन्द्र, राजा राममोहन राय की चर्चा क्यों की मैक्समूलर ने देव को देवृ (देवर )क्यों लिखा,मैक्समूलर की पत्नी ने क्या प्रकाशित करवाया आदि जानने के लिए सुनें