प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१०७६ वां सार -संक्षेप
जो परिणाम हमें दिख रहे हैं उससे सिद्ध हो रहा है कि ये सदाचार वेलाएं फलीभूत हो रही हैं किसी भी कार्य जैसे अध्ययन चिन्तन मनन स्वाध्याय लेखन पूजन सदाचार -श्रवण को करने में यदि बुद्धि और मन एक रूप होकर उसमें प्रवेश कर जाते हैं तो हमारे शरीर की शक्ति सामर्थ्य पराक्रम अनन्तगुणित हो जाते हैं
कुछ अच्छी चीजें हमारे शीलन में रहती हैं तो कुछ बुरी भी यह संसार का स्वभाव भी है और स्वरूप भी
हम संसारी पुरुष हैं हमारे लिए संसार से निर्लिप्त रहना संभव नहीं यद्यपि भगवान् शंकराचार्य के लिए यह संभव था हम तो सामान्य मनुष्य है लेकिन यदि सामान्य मनुष्यत्व की अनुभूति भी यदि हमें होती रहे तो हमें कुछ भी बोझिल नहीं लगेगा
लेकिन जिसे देखें वही पीड़ित है दुःखी है भ्रमित भयभीत असंतुष्ट है
यह असंतुष्टता अविश्वास के कारण होती है
ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रवेश का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि अंग्रेजों ने यह निष्कर्ष निकाला कि भारतवर्ष का साहित्य ही भारतवर्ष की प्राणिक ऊर्जा है और यदि हम इस साहित्य को मुसलमानों की तरह जला देते हैं तो कोई लाभ नहीं क्योंकि ये श्रुति स्मृति पर विश्वास करते हुए इसे याद कर लेते हैं इसलिए इन्हें विकृत करना हित में रहेगा
उन्होंने अंग्रेजी के प्रति लगाव पैदा किया ऐसा करने में मैकाले जैसे अनेक लोगों की भीड़ थी
विलयती चीजों के प्रति आकर्षण में वृद्धि होने लगी भाव ही परिवर्तित हो गया लेकिन सबके भाव नहीं बदले
हम संघर्ष करते ही रहते हैं
आचार्य जी ने youtube के एक video की चर्चा की कि हमारा वास्तविक इतिहास कैसा था
इसका link है
https://youtu.be/Jg7mMyxnXJQ?si=ExXY88yjbBJ5g3Hi
हमें इस वास्तविक इतिहास से दूर करने के लिए आज भी दुष्ट सक्रिय हैं इन्हें निष्क्रिय करने के लिए हमें अध्ययन स्वाध्याय करना होगा संगठित भी होना होगा धन दौलत कमाने के साथ समाजोन्मुखी भी होना होगा तार्किक होना भी आवश्यक है
हमें अपनी शौर्याग्नि को धधकाना होगा
प्रयास करना होगा कि स्वदेश भक्ति का सुरूर छाया रहे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी कौन सी कविताएं सुनाईं डा तुलसीराम वीर सावरकर तक्षक का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें