13.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  13 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८० वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं हम इनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं हम इनकी अधीरता से प्रतीक्षा करते हैं ताकि हम संसार के साथ साथ अध्यात्म के महत्त्व को भी जान सकें अपने को सशक्त बना सकें सही खानपान से विमुख न हो सकें आजकल शिक्षा पर चर्चा हो रही है इसी क्रम में प्रस्तुत है आज की सदाचार वेला



अनौपचारिक चर्चाओं में गम्भीर विषयों को लेकर सरल ढंग से जब परस्पर का संवाद किया जाता है तो ऐसी शिक्षा अत्यन्त प्रभावशाली होती है

आजकल आचार्य जी शिक्षा पर चर्चा कर रहे हैं कि कैसी कैसी साजिशें हुईं हमको अपनी धुरी से कैसे अलग करने की चेष्टा की गई शिक्षा की विकृति कैसे हुई

शिक्षा को विकृत करने का अर्थ है संस्कार को विकृत करना 

जिसके संस्कार विकृत हो जाते हैं उसके विचार अस्त व्यस्त हो जाते हैं आत्मविश्वास डिग जाता है अंग्रेजी सीखना गलत नहीं है लेकिन अंग्रेजी माध्यम होना गलत है 

ऐसे माध्यम से जीवन की शैली का मूलमन्त्र बदल जाता है 

शिक्षा को विकृत करने में कई लोग शामिल थे जैसे कीथ,माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन,   थॉमस बैबिङ्टन मैकाले आदि 

माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन FRSE (6 अक्टूबर 1779 - 20 नवंबर 1859) एक स्कॉटिश राजनेता और इतिहासकार था , जो ब्रिटिश भारत की सरकार से संयुत था बाद में बॉम्बे  का गवर्नर बना  भारतीय आबादी के लिए सुलभ  इसने कई शैक्षणिक संस्थान खोले


थॉमस बैबिङ्टन मैकाले का जन्म, २५ अक्टूबर १८०० रोथले टैंपिल (लैस्टरशिर) में हुआ। पिता, जकारी मैकॉले, व्यापारी था। इसकी शिक्षा केंब्रिज के पास एक निजी विद्यालय में, उसके बाद एक योग्य पादरी के घर और फिर ट्रिनिटी कालेज कैंब्रिज में हुई

इसे  सामान्य समाज को निर्देशित करने के लिए भारत भेजा गया ताकि भारतवासी ये समझें कि अंग्रेज हमारे कल्याण के लिए आये हैं भारत के प्रति यह व्यक्ति अत्यन्त दुर्भावना से भरा था 

१८३४ में इसे भारत का शिक्षा प्रमुख बना दिया गया 

उसने अपने पिता को पत्र लिखा था जो बहुत चर्चा में है कि कैसे भारत में शिक्षा में उसके प्रयास सफलता पा रहे हैं 

१८५९ में इसकी मृत्यु हो गई


इतने कुत्सित प्रयासों के बाद भी भारत का स्वरूप अक्षय बना हुआ है 

विवेकानन्द सरीखे व्यक्ति भी हुए उन्होंने लंदन की मेधा को हिलाकर रख दिया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक कक्षा में प्रतिक्रियाओं के न आने पर क्या सुझाव दिया था भैया राजेश जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें