प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०८१ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों से हमें उत्साह प्राप्त होता है
आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि इनका श्रवण कर हम कर्मशील, शक्ति शौर्य पराक्रम से प्रमंडित,अध्यात्मोन्मुख हों, अंधेरे में दिया जलाने वाले समझदार व्यक्ति बनें, मनुष्यत्व की अनुभूति करें, संकट में समाधान खोजने वाले बनें क्योंकि वैसे भी मनुष्य का जीवन संकट में समाधान खोजने के लिए बनाया गया है, स्वयं संकट न बनें, समाज में संस्कार जगाने की चेष्टा करें, समाज को जाग्रत करने का प्रयत्न करते रहें निराश हताश न रहें, चिन्तन मनन निदिध्यासन लेखन करें, अपनी संस्कृति की अनुभूति करें
हम युगभारती सदस्य के रूप में शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के आधार पर कार्य करते रहें, परिणाम के लिए विचलित न हों क्योंकि परिणाम की अपेक्षा शैथिल्य प्रदान करती है, राष्ट्र को मात्र भूमि का टुकड़ा न मानें, स्वार्थ से दूर रहें,व्यामोह में न डूबे रहें, भारतीयता से परिचित हों
चार वर्ण चार आश्रम की ओर सङ्केत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि ब्राह्मण वर्ण कुंठा से ग्रस्त नहीं होता वह कर्म के आधार पर जीवन जीता है
ब्राह्मण वह जो कर्मशील चिन्तनशील विचारशील परोपकारी संयमी रहे जीवन पर्यन्त तप करता रहे इसी तरह अन्य वर्णों में भी विशेषताएं हैं
आजकल आचार्य जी बता रहे हैं कि शिक्षा में. समस्याएं कैसे उत्पन्न हुईं
मैकाले ने अपने घृणित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बहुत से प्रयास किए
वह चाहता था कि देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण न हो सके व्यक्ति सुख सुविधा के लिए संघर्ष करता रहे लेकिन अपने तत्त्व सत्व की अनुभूति का भाव उसके भीतर उत्पन्न न हो, शिक्षा में भारतीय भाषाएं न रहें
मैकाले ने अंग्रेजी माध्यम पर जोर दिया नौकरी के लिए कुछ नियम अनिवार्य कर दिए
परिणाम यह हुआ कि हमारे भाव समाप्त हो गए भाषा बदल गई भगवान् राम, भगवान् कृष्ण आदि को कुछ लोग कल्पना मानने लगे
, अंग्रेजी आसान लगने लगी
आचार्य जी ने बताया कि स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद बहुत दिनों तक शिक्षा के बजट में २% राशि रखी गई
इसके अतिरिक्त अपने को अंतिम अंग्रेज किसने कहा श्री राजेन्द्र चड्ढा जी की चर्चा क्यों हुई भैया पवन मिश्र जी की चिन्ता का क्या कारण था जानने के लिए सुनें