15.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८२ वां* सार -संक्षेप

 पूरब में ही समस्याएं उभरती हैं किन्तु पूरब में ही सूर्योदय होता है...



प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  15 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८२ वां* सार -संक्षेप


भारत -राष्ट्र


(जिस दिन सबसे पहले जागे, नवल -सृजन के स्वप्न घने

जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने

जिस दिन नभ में तारे छिटके जिस दिन सूरज-चांद बने

तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है।

-बाल कृष्ण नवीन)

 का चिन्तन मनन मन्थन शौर्य पराक्रम कभी भी पूर्णरूपेण समाप्त नहीं हुआ यद्यपि षड़यंत्र तो बहुत होते रहे जब जब भारतवर्ष पर समस्याएं आईं उनके समाधान भी होते गए इसलिए हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए  निराशाजन्य चिन्तन हमें शिथिल कर देता है और हुआ भी ऐसा ही है 

इस कारण सबसे पहले तो हमें निराशा से उबरना होगा जब हम विश्वास करेंगे तो उसका लाभ भी मिलेगा 

भारतवर्ष समस्याओं के समाधान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है 

आज कल भावना की भूमि पर जन्मे अंधेरे में दिया जलाने की प्रेरणा देने वाले आचार्य जी हमारा ध्यान आकृष्ट किए हुए हैं कि किस प्रकार भारत में शिक्षा में साजिशें हुईं 

मैकाले की योजना थी कि वह इस प्रकार की शिक्षा कर देगा जिससे बंगाल में एक भी मूर्तिपूजक नहीं बचेगा 

इंशा अल्ला खाँ, सदल मिश्र, मुंशी सदासुखलाल, लल्लू लाल को लेकर उसने तमाशा खड़ा किया

उसी बंगाल में १८३६ में रामकृष्ण परमहंस का जन्म होता है अक्षर ज्ञान शून्य फिर भी वे परम ज्ञानी हो गए उनके अनेक युवा शिष्य बने 

उन्होंने मूर्ति -पूजा को महत्त्व दिया १८८६ में संसार से वे विदा हो गए उनके शिष्य विवेकानन्द (१८६३-१९०२) ज्योति बनकर प्रज्वलित हुए उस समय अंग्रेजी अपने रंग दिखा रही थी

लोभी लालची उससे व्यामोहित थे 

सन् १८८९ में डा हेडगेवार अवतरित हुए उसी बंगाल में उन्होंने क्रांति का पाठ पढ़ा

आज का युग -धर्म शक्ति उपासना है 

हमें हिन्दुत्व को समझना है तो दर्शन धर्म संस्कृति सभ्यता को समझना होगा 

सभ्यता बाह्य स्वरूप है बाह्य व्यवहार है संस्कृति आंतरिक ऊर्जा है धर्म का अर्थ है कर्तव्य 

जिसमें करणीय और अकरणीय का विवेक हो वह धार्मिक है

अर्जुन का कर्म है युद्ध करना समझाते समझाते भगवान् कृष्ण कहते हैं 



इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।


इस प्रकार बुद्धि से परे आत्मा को जान बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके  तुम  अर्जुन इस दुर्जेय  कामरूप शत्रु को मार डालो


दीनदयाल जी का एकात्ममानववाद इसी पर आधारित है 


हम शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा का आधार लेकर समाज का चैतन्य जाग्रत करने के लिए तैयार है उसके लिए सबसे पहले अपना चैतन्य जाग्रत करना होगा जिसके लिए शिक्षा को व्यवहार में लाना आवश्यक है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कौन सी कविता सुनाई आनन्दभवन का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें