प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०८५ वां* सार -संक्षेप
भारतवर्ष सदियों पुराना है
जिस दिन सबसे पहले जागे, नवल -सृजन के स्वप्न घने
जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने
जिस दिन नभ में तारे छिटके जिस दिन सूरज-चांद बने
तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है।
तब भी भारतवर्ष था आज भी भारतवर्ष है
अनेक विकार विचार आये और गए भी यह सिलसिला तो चलता ही रहेगा कुछ लोग निराशा में व्याकुल रहते हैं और कुछ आशा में जीते हैं
हमें अपनी आशा त्यागनी नहीं चाहिए
प्रायः लोग मैक्समूलर के वैदिक उद्धरण देते हैं जो सही नहीं है यद्यपि उसने मेहनत बहुत की थी स्वामी विवेकानन्द ने भी उसकी प्रशंसा की थी किन्तु उसकी मंशा ठीक नहीं थी उसने बहुत नुकसान पहुंचाया आजकल की studies में भी यही सिद्ध हो रहा है हमें ऐसी studies खोजनीं चाहिए
आचार्य जी ने कल मनुस्मृति का उल्लेख किया था और अन्त्यज को परिभाषित किया था
(उनके वर्णोत्कर्ष की व्यवस्था सुनाते हुए)
अन्त्यज से शूद्र फिर सच्छूद्र फिर वैश्य फिर क्षत्रिय और अन्त में ब्राह्मण वर्णोत्कर्ष है
हमारे यहां मनुष्य के संस्कार को बहुत महत्त्व दिया गया सोलह संस्कार का उल्लेख होता रहता है यह सब मनुस्मृति में है
ऐसी अनेक स्मृतियां हैं इन सबका सार श्रीरामचरित मानस है
प्रभु राम का व्यवहार अद्भुत है
हमारे यहां की ग्रंथावली अद्वितीय है हम इसका अध्ययन करें चिन्तन करें और अपने जीवन में इससे परिवर्तन भी लाएं
शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की भाषा बोलें उसे आचरण में लाएं आत्मबोधोत्सव मनाएं
हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़ उठें
व्यक्तिगत हानि या लाभ लोभ की आशा छोड़ उठें....
कहने का तात्पर्य है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सगे सहोदर हैं हम भेदभाव न करें
आचार्य जी ने नागर और ग्रामवासी की तुलना की
उस व्यावहारिक उदाहरण का भी उन्होंने उल्लेख किया कि जब एक त्वरित भाषण प्रतियोगिता में भैया यतीन्द्रजीत सिंह बैच १९८५ ने ग्रामीण और नागरिक के बीच का अन्तर स्पष्ट किया था
आचार्य जी ने नागरवृत्ति और ग्राम्यवृत्ति भी बताई
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भाईसाहब जी का उल्लेख क्यों किया श्री राजबलि पाण्डेय जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें