मन्त्रार्थभूमिका ह्यत्र मन्त्रस्तस्य पदानि च ।
पदार्थान्वयभावार्थाः क्रमाद बोध्या विचक्षणशैः।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०८७ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी द्वारा हमें उत्थित जाग्रत और कर्मशील बनाने का , आपाधापी में सुपथ का संधान कराने का, आत्ममन्थन कराने का, सद्व्यवहार कराने का, इस कठिन समय में तेजस्वी पूर्वजों की याद दिलाने का नित्य का यह प्रयास अद्भुत है तो जाग्रत उत्थित कर्मशील होने के लिए
आइये प्रवेश करें आज की वेला में
वाणी -विधान परमात्मा का बहुत बड़ा विधान है इसी का आश्रय लेकर हमारे ऋषियों मुनियों ने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन और इसके विस्तार का अद्भुत अकल्पनीय प्रयास किया है
जो व्यक्ति इस वाणी -विधान के सम्बन्ध में जाग्रत रहता है उस व्यक्ति के सांसारिक और पारलौकिक दोनों जीवनों को यह मूल्यवान बना देता है
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।
हमारे यहां तो शब्दाद्वैत दर्शन ही विकसित हो गया शब्द ब्रह्म है परमात्मा स्वर के रूप में पहले
प्रसरित हुआ है ॐ आदिस्वर है वाणी वहीं से प्रारम्भ हुई है
वेद आधार तत्त्व ग्रंथ हैं पाश्चात्य विद्वानों मैक्समूलर आदि ने इन्हें विकृत करने का प्रयास किया और हमारे आधुनिक ऋषि महर्षि दयानन्द की आलोचना की
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रणीत ग्रन्थ है। उन्होंने वेद और वेदार्थ के प्रति अपने मन्तव्य को स्पष्टतः प्रतिपादित करने हेतु इस ग्रन्थ का प्रणयन किया l उन्होंने पाश्चात्य विद्वानों के मतों का अत्यधिक प्रभावशाली ढंग से खंडन किया है
ऋषि मन्त्र का द्रष्टा होता है
हमें क्षणांश भी ऋषित्व की अनुभूति हो जाए तो हमारी दृष्टि खुल जाती है
ऋषि ज्ञान का प्रथम प्रवक्ता है ऋषि के बहुत विभेद हैं जैसे महर्षि राजर्षि ब्रह्मर्षि आदि
किसी न किसी प्रसंगवश यदि ये सब हम भावी पीढ़ी को बता देते हैं तो उन बच्चों की जिज्ञासा जाग्रत होगी
इसी प्रकार मुनि मननकर्ता है ब्रह्म के चिन्तन के लिए वह मौन धारण करता है उसे ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाता है मौन ही उसका व्याख्यान है इस प्रकार हमने ऋषि मुनि का अन्तर जाना
यह ज्ञान शिक्षा से ही संभव है शिक्षा इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाती है बैल अश्व हाथी भी प्रशिक्षित कर दिए जाते हैं किन्तु शिक्षा के तत्त्व को जानकर उसकी गहराई में जाकर संस्कार के स्वरूप का अनुभव करना मनुष्य के द्वारा ही संभव है उसे अपने मनुष्यत्व को पहचानना ही चाहिए
आओ फिर से मिल ध्यान करें.....
आचार्य जी ने लेखन -योग की महत्ता बताई
इससे हमें संतोष भी प्राप्त होता है
इसके अतिरिक्त ऋषि मुनि कहां computer चलाते थे अधिवेशन के लिए क्यों सचेत रहें यज्ञ का क्या अर्थ है जानने के लिए सुनें