24.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९१ वां* सार -संक्षेप

 आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९१ वां* सार -संक्षेप


हमारे उपकार के लिए ही ताकि हम पौरुष और पराक्रम की अभिव्यक्ति कर सकें आचार्य जी नित्य हमें संबोधित कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है आचार्य जी के व्यक्तिगत  जीवन के लिए साधना के रूप में परिलक्षित हो रहे इन सदाचार संप्रेषणों की अविच्छिन्नता कम आश्चर्यजनक नहीं है


भगवान् शङ्कराचार्य को जब एक विशिष्ट अनुभूति हुई तो वह निम्नांकित अभिव्यक्ति के रूप में प्रकट हुई  


न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:

न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥


ऐसी अभिव्यक्ति जो कर्म का एक साक्षात् दिव्य जाग्रत प्रबन्ध काव्य है 

उन्होंने चार धामों की स्थापना कर डाली संपूर्ण भारत को ३२ वर्ष की आयु में पैदल मथ डाला 

विकृत शिक्षा में इन अवतारों का वैशिष्ट्य हमसे छिपाया गया लेकिन विवेकानन्द सरीखे कुछ लोगों ने इसे संजो कर रखा विवेकानन्द का हमसे विशेष जुड़ाव है  विवेकानन्द से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक अधिष्ठान की जाग्रत भूमियां हमें प्रेरित कर रही हैं 

हमें निराश नहीं होना चाहिए सनातन की जीवन यात्रा अप्रतिहत रूप से चल रही है हमारा पौराणिक बोध हमारे अन्दर पुरुषार्थ उत्पन्न करने में सक्षम है 

इतिहास की भयंकर भूलों से सबक लेते हुए और अपने नैतिक बोध को पतित न करते हुए हम पौरुषयुक्त पराक्रम की उपासना करें 

नैतिक बोध में खाद्याखाद्य विवेक भी आता है हमारा शरीर मन बुद्धि विचार आदर्श रहे इसका प्रयास करें 

हमारे तत्त्वबोध को परिलक्षित करने वाले विद्या अविद्या दोनों को विस्तार से समझाने वाले वेद अद्भुत हैं उपनिषदों में उनका सरलीकरण है स्मृतियों ने राह सुझाई पुराणों में हमारे  पुरुषार्थी पराक्रमी पूर्वजों का वर्णन है लेकिन हम भ्रमित हो गए अपने लोग स्वार्थी हो गए हमने इनका महत्त्व नहीं समझा 

आचार्य जी ने बताया दीनदयाल विद्यालय इतिहास की एक घटना है भविष्य का एक संकल्प है भावनाओं का मूर्त स्वरूप है दीनदयाल जी की यात्रा अधूरी रह गई उनके चिन्तन को भावमय व्यक्तियों ने संजो लिया 


आचार्य जी कामना कर रहे हैं कि हमारा व्यक्तिगत जीवन समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करे हम राष्ट्र के लिए क्या कर सकते इस पर विचार करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पवन मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें