तटस्थ भी लहर लहर निहारते हुए थके
पदस्थ भी सुकून को विचारते हुए थके
गृहस्थ हर सदस्य को उबारते हुए थके
मठस्थ दुःख द्वन्द्व को हिकारते हुए थके।
थके परन्तु राह छोड़ना नहीं कबूल है
अनंत राह पर बने रहें यही उसूल है l
आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०९२ वां* सार -संक्षेप
ये सदाचार संप्रेषण हमें संसार के वात्याचक्रों से जूझते हुए संसार -सागर को पार करने का उपाय बताते हैं इस कारण हमें इनकी महत्ता को समझना चाहिए पार करने के इस प्रयास में कभी कभी यह शरीर रूपी साधन बीच में हमसे दूर हो जाता है तो हमें दूसरे साधन की प्राप्ति होती है और इसका हमें विश्वास रहता है क्योंकि
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।
हे भारत ! यह देही आत्मा सभी के शरीर में सदैव अवध्य है अतः समस्त प्राणियों हेतु तुम्हें शोक करने का कोई औचित्य नहीं है
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग नए वस्त्रों को ग्रहण करता है वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग नए शरीरों को प्राप्त होता है
हम इन काव्यमय सिद्धान्तों को सुनकर सुखानुभूति करते हैं
हमारे सूत्र सिद्धान्त हमारा दर्शन अद्भुत है बेमिसाल जीवन पद्धति अद्भुत प्रकृति विलक्षण परिवेश हमें प्राप्त है और इसके बाद भी हमें निराशा हताशा कुंठा है तो इसका कारण है हम ठीक प्रकार से शिक्षित नहीं हुए हम कमाई करने के लिए प्रशिक्षित हुए
हमें बहुत प्रकार से भ्रमित किया गया कुछ लोगों ने संघर्ष किया लेकिन उनके साथ समाज नहीं खड़ा हुआ
देशद्रोही कभी हमारा साथ नहीं दे सकता इस कारण हमें उसकी उपेक्षा करके सोचना होगा
हमें संगठित रहना होगा योजनाएं बनानी होंगी
ऐसे देशद्रोही हमारी शक्ति देख भयभीत हो जाएं यह प्रयास करें
यह देश विधाता की रचना का प्रतिनिधि है
सत रज तम के साथ बनी युति सन्निधि है
परमात्म तत्त्व की लीला का यह रंगमंच
इसमें दर्शित होते जगती के सब प्रपंच
यह जनम जागरण मरण सभी का द्रष्टा है
यह आदि अन्त का वाहक शिव है स्रष्टा है
हम हुए अवतरित पले बढ़े तम से जूझे
विश्रान्त शान्त रहकर रहस्य हमको सूझे
हम पढ़ें लिखें बोलें समझें देश के लिए
जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व संपूर्ण समाज में व्याप्त हो गया हो उसकी स्मृति में बने
दीनदयाल विद्यालय की स्थापना के पीछे भी यही उद्देश्य था दीनदयाल जी स्वदेश के लिए ही जन्मे थे सुख के अनेक अवसरों को वे त्यागते गए
उनकी यात्रा अधूरी रह गई हमें उस अधूरी यात्रा को पूरी करने का संकल्प लेना है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शशि शर्मा जी भैया अनित गर्ग जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें