26.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष  षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९३ वां* सार -संक्षेप


हमारी आर्ष परम्परा अद्भुत है इसे किसी न किसी रूप में अपने भीतर संजोने की चेष्टा करनी चाहिए


वैदिक ज्ञान से लेकर श्री रामचरित मानस तक के ज्ञान में हमें यही बताया गया है कि संसार में रहने की विधि क्या है  भगवान् रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानन्द को डांटते हुए कहा कि निर्विकल्प समाधि का कोई औचित्य नहीं यदि संसार में तुम्हें रहना है 

संसार की सबसे बड़ी निधि कीर्ति है कीर्ति उनको मिलती है जिनके पास भक्ति वाली शक्ति होती है


राम की कथा अत्यन्त अद्भुत कथा है

नागपाश में बंधे भगवान् राम को छुड़ाने के कारण गरुड़ जी को अहंकार हो गया लेकिन अपना अहं विलीन कर कागभुषुण्डी जी से कहते हैं 

अब श्रीराम कथा अति पावनि। सदा सुखद दु:ख पुंज नसावनि॥

सादर तात सुनावहु मोही। बार बार बिनवउँ प्रभु तोही॥2॥


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम  उत्तर कांड के ६३ वें दोहे के आगे १६ दोहे अवश्य पढ़ें इनको बार बार पढ़ने से हमें समझ में आयेगा कि वास्तव में संसार है क्या 


 निर्विकल्प समाधि में रहने वाले परमात्मा के मन में इच्छा उत्पन्न होती है वह सविकल्प होता है और वह सृष्टि की रचना करता है और सबसे पहले माया का सृजन होता है जिसे प्रकृति कहते हैं प्रकृति और पुरुष सृष्टि  का आधार हैं

परमात्मा ने मनुष्य को सब प्रकार की शक्तियां देकर स्वतन्त्र छोड़ दिया यह स्वातन्त्र्य संस्कारी के लिए अमृत तुल्य है और विकारी के लिए विष है 

यह सारा वैदिक ज्ञान है जिसने फिर विस्तार लिया गीता और मानस में भी यही ज्ञान निहित है 

वही बात बार बार दोहराई जाती है जो विवेकानन्द की साधना थी वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की साधना थी यह देश यह संस्कृति यह विश्वास ही सर्वोपरि है 

हमें विकृतियों में से नवनीत निकालना चाहिए 

इसी कारण परिस्थितियों को देखकर हमें संस्कारित होने की आवश्यकता है संसार के साथ हम संयुत तो हों लेकिन संसारत्व को समझकर अपनी शक्ति बुद्धि विचार को संस्कारित कर आगे चलने के लिए संकल्पित होवें 

आचार्य जी ने अधिवेशन की चर्चा की इसका उद्देश्य स्पष्ट रखें वर्तमान में जीवित रहने का प्रयास करें सारसंक्षेप करें 

आचार्य जी ने संगठन किस प्रकार चल सकता है यह स्पष्ट किया दोषारोपण से संगठन नहीं चलता 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने तांगेवाला कौन सा  प्रसंग सुनाया जानने के लिए सुनें