27.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष  सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९४ वां* सार -संक्षेप


ब्रह्मा ने इस जड़-चेतन विश्व को गुण-दोषमय रचा है किन्तु हम राष्ट्र -भक्त दोषों को त्यागने और सद्गुणों को ग्रहण करने का प्रयास करते हैं हमारा सौभाग्य है कि दूरस्थ शिक्षा द्वारा आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं 

अत्यन्त विषम परिस्थितियों में अवतारी साहित्यपुरुष तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस की रचना की यह ग्रंथ अद्भुत है हमें इसका अध्ययन करना चाहिए क्योंकि यह हमें उत्साहित करता है संकटों में बिना विचलित हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान देने की याद दिलाता है परिस्थितियों से जूझने की प्रेरणा देता है 


हमें सब कुछ समझते हुए मार्ग निकालने का प्रयास करना चाहिए हम जाग्रत रहें और संगठित रहें संगठित रहना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है 

"संघे शक्ति: कलौयुगे"

सात्विक समझदार सुयोग्य शक्तिसम्पन्न विचारशील लोगों के संगठन में ही ईश्वरत्व का निवास होता है इससे इतर गिरोहबन्दी में विकार पैदा होने लगते हैं


रामचरित मानस में भी यही सब बताया गया है कागभुषुण्डी जी गरुड़ जी महाराज को सारी कथा सुना रहे हैं

हे खगराज गरुड़जी! 

जो माया सारे जगत् को नचाती है और जिसका चरित्र कोई  वर्णित नहीं कर पाया, वही माया प्रभु श्री रामचंद्र जी की भृकुटी के सङ्केत पर अपने परिवार सहित नटी की तरह नृत्य करती है

भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ ७२ क॥

अद्भुत वर्णन किया है तुलसीदास जी ने 

भगवान् राम के पिता भी राजा थे लेकिन उनके नाम पर अर्थात् दशरथ चरित मानस आदि सुनाई नहीं देता  यद्यपि उनका कार्यव्यवहार इतिहास के रूप में दर्ज है 

भगवान् राम को संसारी पुरुष की तरह दिखाया गया है आचार्य जी ने माया की सीता और तात्विक सीता की ओर संकेत करते हुए बताया कि हमारा भी कभी माया का स्वरूप होता है कभी तात्विक स्वरूप होता है तात्विक स्वरूप में हम शक्तिसम्पन्न ज्ञानसम्पन्न विचारसम्पन्न रहते हैं माया रूप में भय कुशङ्का भ्रम निराशा रहती है 

माया की सीता कहती हैं 


जाहु बेगि संकट अति भ्राता। लछिमन बिहसि कहा सुनु माता॥

भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ कि सोई॥2॥


कुशल कलाकार वही है जो वह रूप धारण करे लोग वही समझें 


बच्चे मोहित हो जाते हैं भावुक व्यक्ति मोहित हो जाते हैं जो ज्ञानसम्पन्न हैं वे जानते हैं कि यह लीला हो रही है 


कुछ लोग ऐसे हैं जो राम  का अस्तित्व ही नकारते हैं 

ऐसे संसार में हम निवास करते हैं


हम स्वयं ऐसे कूप से बचे रहें और इसके लिए चिन्तन मनन ध्यान धारणा द्वारा स्व -रूप में प्रवेश करें

 हम कौन हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

यह भाव उस समय प्रविष्ट होने चाहिए जब हम भ्रमित होने लगें 

लोग केवल धन के पीछे भागते रहते हैं और जब हम धन के पीछे भागेंगे तो विचारशून्य और ज्ञानशून्य हो जाएंगे धन आधार नहीं है यह जीवनाधार नहीं है केवल साधन है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने Agarwal Classes का नाम क्यों लिया हमें क्या decode  करना है भैया मोहन जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें