जो जहाँ है वहीं से समाजी बने
जागरणमंत्र युत यज्ञ याजी बने
दूसरों के क्रिया कर्म को छोड़कर
सत्कृती धर्ममय कर्मसाजी बने।
आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०९५ वां* सार -संक्षेप
ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित करते हैं अनेक व्यवधान आने के बाद भी इनकी अविच्छिन्नता अद्भुत है यह भी एक प्रकार का भक्ति का ही स्वरूप है
आचार्य जी के व्यक्तिगत जीवन हेतु यह साधना है
संसार से मुक्त होकर हमें इनका श्रवण करना चाहिए
आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि शान्ति के दर्शन कैसे होते हैं
हम सबके मन में, संसार में रहते हुए सांसारिक समस्याओं से जूझते हुए यशस्विता की कामना रहती है
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
कितने अद्भुत भाव आये होंगे भगवान् शङ्कराचार्य के मन में
तभी उन्होंने यह लिख दिया उनके भाव विचार भाषा अलौकिक रही ऐसी अलौकिकता क्षणांश में भी हमें मिल जाए तो यह भगवान् की कृपा होगी यह भावदृष्टि जब मिलती है तो संकटों में भी प्रकाश दिखने लगता है भारतीय जीवनदर्शन में जो भक्ति का स्वरूप है उसके अनुसार भक्त को शरणागत होना चाहिए
अध्यात्मवादी इसे विश्वास कहते हैं
युद्धक्षेत्र में सम्बन्धियों साथियों को देखकर अर्जुन मोहग्रस्त होता है भगवान् श्रीकृष्ण को वह मित्र समझ रहा है तब भगवान् उसको अपना विराट् स्वरूप दिखाते हैं
गोस्वामी तुलसीदास की रघुनाथ गाथा के लंका कांड में आता है
बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।
लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ 14॥
विदुषी मन्दोदरी के मन में भगवान् राम का यह स्वरूप आता है और वह रावण को समझाने का प्रयास करती है इसे मन्दोदरी गीता कह सकते हैं
भारतवर्ष में प्रकाश बिखेरने वाले अनेक लोग हुए हैं और आगे भी होंगे हमें भी शौर्य- प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति का प्रयास करना चाहिए और अंधकार को दूर भगाने का प्रयास करना चाहिए
समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए
विचित्र है संसार
विश्वासी विश्वास करता है और जो संसारी है वह मीनमेख निकालता है कलिकाल का विचित्र स्वरूप है कि संसद में हायतौबा मची रहती है कहने को वहां जनजीवन के भाग्यविधाता हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अमित भैया डा मलय भैया आकाश का नाम क्यों लिया किसने मूर्ति बनाने के बाद भी कहा यह मैंने नहीं बनाई जानने के लिए सुनें