3.7.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७० वां* सार -संक्षेप

कुछ दुष्ट लोगों को उत्पात करना बहुत अच्छा लगता है 

उत्पात के लक्षणों से यदि हम भयभीत हो जाएंगे तो उत्पाती उत्साहित हो जाएंगे उत्पाती तभी उत्साहित होता है जब शक्तिसम्पन्न  शान्त व्यक्ति शक्ति की अनुभूति नहीं करता


जब कि हमारा शास्त्र कहता है डरो मत 

भय अनेक प्रकार का होता है इसलिए किसी भी भय से भयभीत नहीं होना चाहिए

यदि इसके बाद भी हम भयभीत होते हैं तो इसका अर्थ है हमारा अध्ययन और स्वाध्याय कमजोर है

उन्नति विकास स्वास्थ्य शक्ति बुद्धि भक्ति विचार चिन्तन मनन दुष्टों के नाश शिष्टों के विकास की तरह ये स्थायी विषय हैं इन्हीं विषयों का उल्लेख इन सदाचार संप्रेषणों में होता है इस कारण ये हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं

हमें प्रेरित उत्साहित करने के लिए आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय दे रहे हैं यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हमें परिस्थितियों को भांपना चाहिए अथर्ववेद में महाशान्ति विधि में इन्हीं सब बातों का उल्लेख है 

विधि से मुक्त होकर हम चुप्पी साधकर बैठे रहें और सब अच्छा होता रहे यह संभव नहीं इसीलिए हमें अपने लक्ष्य का सदैव ध्यान रखना चाहिए 

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्


राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 


कृण्वन्तो विश्वमार्यम्


अखंड भारत 

व्यक्ति व्यक्ति के सामने लक्ष्य है क्योंकि हम संसार के अंग हैं इस परिवर्तनशील संसार, जिसे मिथ्या ज्ञान से उत्पन्न वासना कहा गया है,में कौन नहीं जन्मा कौन नहीं मरा 

लेकिन वही व्यक्ति सच्चा

जीवन जीता है जिससे उसका वंश उन्नति और प्रसिद्धि प्राप्त करता है |


स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम् । परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ।।

ये मनुष्य के लिए ही संभव है क्योंकि मनुष्य कर्मयोनि में है कर्मयोनि का मनुष्य जब भोगयोनि में भ्रमित हो जाता है तो उसकी कर्मचेष्टाएं कुंठित हो जाती हैं 

कूर्मपुराण में ईश्वर गीता के अनुसार 

संसार की एक अत्यन्त रोचक परिभाषा है 

आत्मा परमार्थतः चैतन्य है माया और प्राण नहीं किन्तु अज्ञान से वह अपने को कर्ता सुखी दुःखी दुबला मोटा कहता है 

इस संसार में रहते हुए कुछ क्षणों के लिए संसारत्व से मुक्त होना आवश्यक है इन सदाचार वेलाओं का मूल भाव यही है 

हम कौन हैं हम कैसे हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 


इसके अतिरिक्त अथर्वा ऋषि की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की भैया कै० शिवेन्द्र जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ राजनीति के विषय में क्या बात कही आदि जानने के लिए सुनें