प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०७१ वां* सार -संक्षेप
यह संसार असार सारमय अद्भुत गजब खिलौना है
कुश कांटों के परिधान पहनकर भी सुन्दर है लोना है
हम खेल रहे इससे या फिर ये हमको खेल खिलाता है
गतिमयता इतनी अधिक नहीं कुछ साफ समझ में आता है
सब पढ़ा सुना इसके आगे बेकार दिखाई देता है
लगता भर है दे रहा मुझे पर सब कुछ मुझसे लेता है...
संसार में मनुष्य को परमात्मा द्वारा जो चिन्तन और विचार दिया गया है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और अद्भुत है
इसी के आधार पर मनुष्य समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो जाता है मनुष्य वही है जो प्रयास में रत रहता है
दिव्यभूमि भारत, जहां भावनाओं की आहुतियां दी जाती रही हैं,में चिंतन की परंपरा बहुत प्राचीन और समृद्ध है।यहां चिंतन का महत्व अत्यन्त उच्च माना गया है और इस चिन्तन ने समाज, संस्कृति, धर्म और राजनीति के विभिन्न पहलुओं को आकार दिया है हमें इस दिव्यता की अनुभूति होनी चाहिए
भारत की सेवा सहायता सुरक्षा के लिए अनन्तकाल से महायज्ञ चल रहा है हम युगभारती के सदस्य भी इसी भाव का आधार लेकर कार्य और व्यवहार करने में संलग्न है हमने अपना लक्ष्य भी बना रखा है कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्
पं दीनदयाल जी भी इसी भाव की प्रतिमा बनकर जिए और जूझे
हम लोग उनके विचारों के पल्लवन के लिए उत्साहित हुए संकल्पित हुए सनातन जीवनशैली को अपनाने के लिए प्रेरित हुए
यह देश विधाता की रचना का प्रतिनिधि है
सत रज तम के साथ बनी युति सन्निधि है
परमात्म तत्त्व की लीला का यह रंगमंच
इसमें दर्शित होते जगती के सब प्रपंच
यह जनम जागरण मरण सभी का द्रष्टा है
यह आदि अन्त का वाहक शिव है स्रष्टा है
हम हुए अवतरित पले बढ़े तम से जूझे
विश्रान्त शान्त रहकर रहस्य हमको सूझे
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम सब कुछ करें लेकिन विचारों से दूर न रहें विचारों को कर्म में परिवर्तित करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने समस्याओं से संबन्धित कौन सी कविता सुनाई आचार्य श्री जे पी जी से संबन्धित कौन सा प्रसंग सुनाया भैया अजय शंकर जी भैया प्रवीण भागवत जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें