30.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९७ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित करते हैं और अनेक व्यवधानों  के आने के बाद भी इनकी अविच्छिन्नता अद्भुत है अद्वितीय है 

संसार से मुक्त होकर हम संसारी पुरुषों को इनका श्रवण करना चाहिए और अन्य को भी प्रेरित करना चाहिए



चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति हम संसारी पुरुषों को शक्ति प्रदान करती है आनन्द देती है और हमारे विचार परिमार्जित हो जाते हैं


हम सितम्बर में राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं इस तरह के आयोजन अत्यन्त प्रभावशाली होते हैं हमारे सामर्थ्य में उत्साह में वृद्धि करते हैं हमारे विचार विमल बनें

 इसका प्रबन्ध करते हैं नहर की झाल का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने बताया कि जिस प्रकार झाल प्रवाह को तीव्र करता है उसी प्रकार ये कार्यक्रम किसी विचार को व्यवस्था को विषय को तीव्र करते हैं 

हम इस तरह के आयोजनों से अत्यन्त उत्साहित होते हैं इसी कारण हमारी संस्कृति में एक से एक विशाल मेलापकों का प्रबन्ध किया गया है जैसे कुम्भ के मेले 

ऐसे चिन्तनपरक देश में यदि हम निराश हताश रहते हैं तो यह अत्यन्त दुःखद है हमारी आर्षपरम्परा हमें निराशा हताशा से दूर करती है 

भयानक परिस्थितियों ने अंधकार के दीप तुलसीदास जी ने मानस की रचना कर डाली दशरथ जैसे महारथी जनक जैसे सुविज्ञ    विश्वामित्रीय सृष्टि के स्रष्टा क्षत्रिय से ब्राह्मण बने विश्वामित्र जैसे ऋषि के होने के बाद भी भारतवर्ष में रावण ने अपने अनेक हस्तक छोड़ दिए जो आतंक मचाए थे  लेकिन दशरथ जनक आदि भी ध्यान नहीं दे रहे थे 

यह सद्गुण -विकृति है 

सद्गुण इस मात्रा तक पहुंच जाएं कि वे विकार का रूप ले लें 

ऐसे समय में पौरुष और पराक्रम को जाग्रत करने की आवश्यकता होती है 

रामकथा इसी कारण महत्त्वपूर्ण है 

बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥

रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥


रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥

सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥



राम-कथा पंडित जनों को विश्राम देने वाली, सभी मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली और कलियुग के पापों का समूल नाश करने वाली है। यह कथा कलियुग रूपी साँप के लिए मोरनी है और विवेक रूपी अग्नि को प्रकट करने के लिए अरणि है।



रामकथा कलियुग में सारे मनोरथों को पूरा करने वाली कामधेनु गौ है और सज्जनों हेतु सुंदर संजीवनी जड़ी है। पृथ्वी पर यही अमृत - नदी है, जन्म-मरण रूपी भय को समाप्त करने वाली और भ्रम रूपी मेढ़कों को खाने के लिए सर्पिणी है।


आचार्य जी ने अधिवेशन के लिए डायरी बनाने का परामर्श दिया जो सोचें उसे लिख डालें अपने दायित्व ले लें अपना उद्देश्य स्पष्ट करें हमें अधिवेशन में बहुत अच्छी व्यवस्थाएं करनी होंगी अधिवेशन करके अपने कर्तव्य की इतिश्री न कर लें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया पुणे कौन कौन जा रहा है सुरेश सोनी जी प्रदीप सिंह जी का उल्लेख क्यों हुआ शासक अनियन्त्रित क्यों हुआ जानने के लिए सुनें