31.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  31 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९८ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने से हमें आनन्द और उत्साह प्राप्त होता है हम अपने लक्ष्य निर्धारित कर पाते हैं 


भारतीय जीवन दर्शन में विश्वास करने वालों का विश्वास है कि सृष्टि अनादि काल से चल रही है अनन्त काल तक चलेगी

 परिवर्तन आते रहते हैं परिवर्तित स्वरूपों के साथ हमको सामञ्जस्य बैठाना होगा


हम सितम्बर में अधिवेशन करने जा रहे हैं और इस तरह के आयोजनों को करने के पीछे एक कारण है कारण स्पष्ट है हम भारत भारतीयता अध्यात्म शक्ति शौर्य के समन्वय की आवश्यकता समझते हैं भारत ही इनका उद्भव स्थान है और भारत की जीवन पद्धति से विश्व का कल्याण संभव है


हमें पुस्तकों के चयन में भी सचेत रहना होगा उनका रचयिता कौन है यह जानना भी आवश्यक है क्योंकि बहुत कुछ ऊल जलूल भी लिखा रहता है 

सारा संसार अध्यात्म से शून्य हो गया है और भोगवाद में प्रलिप्त है और  यदि भारत भी उसी का अनुसरण करेगा तो घोर अनर्थ हो जाएगा

भोगवाद में लिप्त मानवता को अध्यात्म और भौतिकता का समन्वय सिखाना होगा 

भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अंधकार  दूर करने में सक्षम हैं और वे अंधकार दूर कर भी रहे हैं और परमात्मा की ही ये लीला है कि वह ऐसे लोगों को उत्साहित कर रहा है 

परमात्मा की लीला अद्भुत है निर्विकल्प समाधि में स्थित परमात्मा के मन में इच्छा उत्पन्न हुई उसके मन में ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हुआ और आदिस्वर ॐ निकला उसी को प्रसाद मानकर हम ग्रहण करते हैं चाहे ईश्वरवादी हो या अनीश्वरवादी, सगुणोपासक हो या निर्गुणोपासक जिसने अध्यात्म में प्रवेश किया है उसे इस चिन्तन में जाना ही पड़ता है



पं दीनदयाल जी का एकात्म मानवदर्शन भी इसी पर आधारित है एक ही तत्त्व समस्त सृष्टि में व्याप्त है मानव अपनी लालसाओं की पूर्ति करते हुए इसकी अनुभूति भी करे भारतीय संस्कृति में भौतिकता आध्यात्मिकता की विरोधी नहीं है वह इसकी स्थूल अभिव्यक्ति है 

भारतीय समाज ने प्रारम्भ से ही जीवन में सहयोग समन्वयता पूरकता में विश्वास रखा है आचार्य जी ने सिक्किम भूटान के देशदर्शन की ओर संकेत करते हुए बताया कि आयुर्वेद में किसी फल पत्ती छाल को प्राप्त करने से पहले हम प्रार्थना करें कि इस कारण हम इसका उपयोग करने जा रहे हैं हम त्यागपूर्वक उपभोग करते हैं हम भारत माता गौमाता, गंगा माता कहते हैं

इसके अतिरिक्त england के इतिहासवेत्ता ने भारत के विषय में क्या कहा सीता के स्वयम्वर का उल्लेख क्यों हुआ शौर्यप्रमंडित अध्यात्म क्यों अनिवार्य है जानने के लिए सुनें