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आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९९ वां* सार -संक्षेप


निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥

जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥



सरस हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती ? लेकिन जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे श्रेष्ठ पुरुष संसार में अधिक नहीं हैं


अपनी प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती अर्थात् सभी को अच्छी लगती है लेकिन स्वार्थ से इतर ऐसे सहज स्वभावी लोग भी होते हैं जो दूसरों की प्रशंसा के लिए उद्यत हो जाते हैं



आचार्य जी ने पुडुचेरी का एक प्रसंग बताया जब किसी मन्त्री ने अखंड भारत के चित्र को देखकर उसे सुधारने के लिए कहा था तो उसके उत्तर में वहां के एक कार्यकर्ता ने कहा यह आपके लिए मानचित्र होगा हमारा तो आराध्य देव है


श्री अरबिंदो ने भवानी मंदिर नामक पुस्तिका की रचना की जो देश की क्रांतिकारी तैयारी के लिए थी। इसकी हजारों प्रतियां गुप्त रूप से बांटी गईं । इसी का एक अंश है 



भारत माता वास्तव में पुनर्जन्म के लिए प्रयास कर रही है, पीड़ा और आंसुओं के साथ प्रयास कर रही है, लेकिन वह व्यर्थ प्रयास कर रही है। उसे क्या दिक्कत है, वह जो इतनी विशाल है और इतनी शक्तिशाली है? निश्चित रूप से कोई बहुत बड़ा दोष है, हमारे अंदर ही कुछ  कमी है, हमारे समीप शेष सब कुछ है, लेकिन हम शक्ति से विहीन हैं, ऊर्जा  रहित हैं। हमने शक्ति को त्याग दिया है और इसी कारण शक्ति ने हमें त्याग दिया है। माँ हमारे दिलों में है किन्तु  हमारे मस्तिष्क में, हमारी भुजाओं में नहीं है।


और यह सिलसिला चल रहा है career बनाना बुरा नहीं है हमें केवल युगभारती की प्रार्थना मात्र कहनी नहीं है उसके अंशों को जीवन में उतारने के लिए प्रयत्नशील होना है इसके लिए हमें साधना करनी होगी 

भारत को पराजित करने के अनेक प्रयास हुए और हम लोग कहते हैं हिन्दू को पराजित करने के प्रयास हुए  हमें स्पष्ट रूप से यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दुत्व ही भारतीयत्व है  भारत हिन्दू और हिन्दुत्व के बिना कुछ भी नहीं है हमारे साथ बहुत धोखे हुए  अंग्रेजों ने  भी बहुत अनिष्ट किया


इस कारण हमें सात्विकता को धारण कर भारत भक्ति के साथ शक्ति उपासना पर ध्यान देना है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने देवादास जी का उल्लेख क्यों किया भैया मनीष कृष्णा भैया संतोष मिश्र जी भैया मलय जी का नाम क्यों लिया शक्ति और भक्ति के संयोजन को चरितार्थ करने वाले मानस के किस प्रसंग का उल्लेख किया जानने के लिए सुनें