5.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७२ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हम सद्विचार ग्रहण करते चले आ रहे हैं जिनका सदुपयोग करके हम सुयोग्य संस्कारवान् शक्तिसम्पन्न तेजस्वी कर्मनिष्ठ आदि बन सकते हैं 

आचार्य जी ने स्वयंसेवक  का अर्थ स्पष्ट किया 

स्वयं की प्रेरणा से जो अपनी शक्ति बुद्धि विचार से राष्ट्र -सेवा के लिए प्रवृत्त हो उसे स्वयंसेवक कहते हैं 

जब प्रातः हम उठते हैं 

तो प्रायः प्रातः स्मरण करते हैं 

कराग्रे वसते लक्ष्मी.....

इसी में एकात्मता स्तोत्र संयुत कर दिया गया जो भारत की राष्ट्रीय एकता का उद्बोधक गीत है इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में भी गाया जाता है

इसी का अंश है 

चतुर्वेदाः पुराणानि सर्वोपनिषदस्तथा

रामायणं भारतं च गीता सद्दर्शनानि च ॥८॥


जैनागमास्त्रिपिटकाः गुरुग्रन्थः सतां गिरः

एषः ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा ॥९॥

वेदों पुराणों उपनिषदों आदि के प्रति हमारी श्रद्धा हो 


शिक्षा के संबन्ध में एक सुस्पष्ट विचार है 

शिक्षा अर्थात् संस्कार 

संस्कार अर्थात् विचार 

विचार अर्थात् शक्ति 

हम  स्वदेश के लिए स्वधर्म के लिए शक्ति अर्जित करें 


स्वधर्म स्वदेश भारतीय सनातन चिन्तन का एक मौलिक आधार है 

हम संघर्ष करते चले आ रहे हैं फिर भी मिटे नहीं 

जीवित हैं और जाग्रत होने के लिए उत्सुक हैं 

यह उत्सुकता बनी रहे इसका आधार है शिक्षा


समय का परिवर्तन अद्भुत होता है  अरब से उठे तूफान से हम भी प्रभावित हो गए  हमारे ग्रंथों की व्याख्याएं काफी समय तक बन्द रहीं दुष्टों ने अपने बल पर विध्वंस प्रारम्भ कर दिए ग्रंथागार भी जलाए गए नालंदा का उदाहरण हमारे सामने है

नालंदा विश्वविद्यालय पर तीन बार आक्रमण हुआ  परन्तु सबसे विनाशकारी हमला ११९३ में हुआ  जिसमें दुष्ट बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया


फिर अंग्रेज आ गए 

हमारे अन्दर की सरलता सज्जनता का उन लोगों ने लाभ उठा लिया

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले...


मैक्समूलर भी दुष्ट था उसने 

वेद के उलटे सीधे अनुवाद किए 

उसने हमारे ज्ञान के मूल 

को बेकार बताया 

उस समय भी अपार धन देकर शिक्षित लोगों को व्यामोहित किया जा रहा  था आज भी यही चल रहा है इस कारण हमें सचेत रहने की आवश्यकता है

आज अंग्रेजी बोलने वाले को हम विद्वान् समझते हैं जब कि ऐसा नहीं होना चाहिए 

 शिक्षा के माध्यम से हम नई पीढ़ी को जाग्रत कर सकते हैं 

उसे हर हाल में समझाना होगा समाज का शुद्धिकरण आवश्यक है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नाना जी देशमुख का उल्लेख क्यों किया आदि जानने के लिए सुनें