प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०७३ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी जिनके पास अद्भुत दृष्टि है एक शिक्षक के रूप में नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है आचार्य जी हमारी आत्मज्योति जलाने के लिए तत्त्व के भाव प्रेषित करते हैं जिनका लाभ उठाकर हम गम्भीर से गम्भीर समस्याओं का समाधान आसानी से निकाल सकते हैं भ्रमित होने से बच सकते हैं भटकने से बच सकते हैं निराशा से दूर रह सकते हैं शान्ति शक्ति भक्ति कौशल बुद्धि विचार व्यवहार प्राप्त कर सकते हैं यही शिक्षकत्व का मूल तत्त्व है
जिस शिक्षक में दृष्टि, जिसका भावों पर आधार है ,नहीं होती वह सृष्टि नहीं रच सकता
शिक्षा ब्राह्मणत्व की आधारभूमि है शिक्षा को समझने की बड़ी आवश्यकता है शिक्षा ज्ञान का सोपान है यूं तो हम सभी शिक्षक हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं
जिनमें शिक्षकत्व का अभाव है हमें उनसे प्रभावित नहीं होना चाहिए हम उनसे सहानुभूति रख सकते हैं
आज की शिक्षा भिन्न प्रकार की है
हमें शिक्षा को गम्भीरता से लेना चाहिए
हमें अध्ययन की इसी कारण आवश्यकता है कि हम दैत्य परम्परा से संघर्ष करने में भ्रमित न हों और अपने को विशुद्ध भी बनाए रखें
यदि हम भ्रमित होंगे तो अपना रास्ता पा भी नहीं सकते लक्ष्य हमसे दूर रहेगा
आज की शिक्षा में यही सब नहीं बताया जाता वह केवल नौकरी के लिए बनी है पैसा कमाने के लिए बनी है वह हमें न तो स्वावलम्बी बनाती है न हमें सुरक्षा देती है न ही हमें स्वस्थ रखती है
मनुष्य जब पैसा कमाने की मशीन बन जाता है तो उसके भीतर भाव भक्ति समाप्त हो जाती है
जो भरा नहीं भावों से......
इसी कारण वह पशु के समान हो जाता है
धन साधन है साध्य नहीं
आचार्य जी प्रायः परामर्श देते हैं कि हमें रामचरित मानस का पाठ अवश्य करना चाहिए तुलसीदास ने भावों से भरी रामकथा को सामान्य भाषा में प्रस्तुत कर दिया इसमें इतिहास भूगोल मनोविज्ञान राजनीति दर्शन अर्थशास्त्र आदि बहुत कुछ है
इसी तरह गीता है महाभारत है
गोविन्द स्वामी जी कहते हैं
Mahabharat is the greatest work on psychopathology
i. e.the scientific study of mental illness or disorders
एक शिक्षक को इसका ज्ञाता होना चाहिये
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण सारस्वत जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें