प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१०७५ वां* सार -संक्षेप
हम अपने यज्ञीय सुकर्मों से शिखर को स्पर्श करने के लिए प्रयत्नशील रहें,बिन्दु से सिन्धु तक की यात्रा के लिए उद्यत रहें,भय और भ्रम से दूर रहकर आनन्द -अर्णव में तैरैं,सनातन धर्म का परिपालन करें, अपनी परम्पराओं से प्रेम करें,अपने पूर्वजों की गौरव -गाथाओं को याद करें,धन के पीछे रार न ठानें, भरपूर स्नेह से भरे दिए जलाते रहें,ईर्ष्या वैमनस्य का कर्दम दूर करें,पश्चिम की देखा देखी नकल न करें, चरैवेति का मन्त्र याद रखें, भारत भा -रत हो इसके लिए शुचिता कर्मठता का पर्याय बनी वास्तविक शिक्षा को महत्त्व देने का प्रयास करें,हम विश्व -गुरु बनें, आचरण -शुद्धता पर पूर्णरूपेण विश्वास करें, समाजोन्मुखी दृष्टि रखें, आत्मविश्वासी चिन्तक विचारक बनें इसके लिए आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं हम धन्य हैं कि हमें उनका यह सान्निध्य प्राप्त है और हमारा जन्म तप त्याग समर्पण कर्म की धरती भारत भूमि में हुआ है इसके लिए भी धन्य हैं
ऐनी बेसेंट ने कहा था विश्व के महान् धर्मों और पंथों के अपने चालीस वर्ष के अध्ययन के पश्चात् मैंने यह पाया कि हिन्दू धर्म जितना संपूर्ण, विज्ञान- सम्मत,दार्शनिक और आध्यात्मिक है उतना दूसरा कोई नहीं
ऐसी विदुषी महिला थीं ऐनी बेसेंट
दूसरी ओर मूर्ख लोगों की भी कमी नहीं है जो सनातन धर्म का मजाक उड़ाते हैं
हमें मूर्ख लोगों के भ्रम जाल में नहीं फंसना चाहिए
१७ सितम्बर २०११ को लिखी आचार्य जी ने अपनी कविता सुनाई
चिन्ता है भारत में क्यों भ्रष्टाचार बढ़ा...
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा दीपक सिंह जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें