2.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०० वां* सार -संक्षेप

अंधकार का हरण करने वाले ये सदाचार संप्रेषण हमें केवल सुनने नहीं हैं गुनने भी हैं 


हम प्रकृति माता और परमपिता से दैहिक दैविक और भौतिक शान्तियों की कामना करते हैं इसी कारण हम लोग सदैव तीन बार शान्ति शान्ति शान्ति कहते हैं

आत्मिक विस्तार हमारे भारतीय जीवन दर्शन का आधार है इसी आधार पर हम उदार चरित्र वाले सबके सुख की निरोगी रहने की सबके कल्याण की कामना करते हैं और चाहते हैं कोई दुःखी न रहे और संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब मानते हैं हम सामञ्जस्यपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते हैं लेकिन जब सामञ्जस्य में हम शक्ति की अनुभूति और अभिव्यक्ति भूल जाते हैं तो परिणाम भयावह होते हैं होते रहे हैं इसी कारण हमें संघर्ष करने पड़े और हम भ्रमित भी हो गए पथभ्रष्ट हो गए 

हम बाहर के देशों से आकर्षित होकर पलायन करने लगते हैं यह चिन्ता का विषय है पलायन में व्यक्ति अपनी जड़ों से उखड़ जाता है सौभाग्य से हमारा जन्म भारत में हुआ है हमें इस पर गर्व करना चाहिए



हम लोग वैदेशिक उदाहरण देने के अभ्यासी हो गए हैं नई पीढ़ी को यदि वैदेशिक उदाहरण देकर सचेत करना हो तो एक अमेरिकी सीनेट के अध्यक्ष के भाषण का गम्भीर अंश है जिसे आचार्य जी ने पढ़ा 

इस अंश के अनुसार भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण प्रकृति को भोग्या समझा जा रहा है प्रकृति के साथ खिलवाड़ हमें महंगा पड़ रहा है  प्रदूषण के कारण तापमान बढ़ रहा है समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है


आचार्य जी ने The Impact of Science on Society

Book by Bertrand Russell की चर्चा की इसके अनुसार आज का मानव मानवीय कौशल और मानवीय मूर्खता के बीच जी रहा है अधिकाधिक विकास का अंत अत्यन्त दुःखदायी होगा 

Al Gore

Former Vice President of the United States का वक्तव्य है 

हम wrong track पर चल रहे हैं हमें सलाह के लिए पूर्व की ओर उन्मुख होना होगा



हम पूर्व में ही रहते हैं हम उदयाचल के उपासक हैं वे अस्ताचल के भोगभोगी हैं हम सकारात्मक चिन्तन करते हैं हमारी दृष्टि श्रेष्ठ है हम तत्त्व हैं हम भौतिकता नहीं हैं 

हमारा उद्घोष है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्


इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज कहां रुकेंगे आज तक हमें किसने जीवित रखा है अधीर लोगों के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें