प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११०९ वां* सार -संक्षेप
अनेक अवसरों पर परिस्थितियों से प्रभावित होकर व्यक्ति शिथिल पड़ जाता है इन परिस्थितियों को अपने विचारों में ढालने के लिए हमें साधक प्रयत्न करने होते हैं शिथिलता शक्ति -शून्यता की द्योतक है
हमारे यहां शक्ति का वर्णन बहुत विस्तार से हुआ है जब जब हमने इस शक्ति का उपासन नहीं किया तब तब मनुष्य के रूप में रहने वाले हम लोगों के सामने बाधाएं आईं
इतना श्रेष्ठ ज्येष्ठ विचारों और सात्विक व्यवहारों से परिपूर्ण होने के बाद भी भारतवर्ष के ऊपर ही इतने संकट क्यों आते हैं यह विचारणीय प्रश्न है
दुष्ट थोड़ी शक्ति पाकर मदान्ध हो जाते हैं और हम इतने शक्तिसम्पन्न होने के बाद भी भ्रमित रहते हैं शक्ति की भ्रामक परिकल्पना के कारण कभी श्रेष्ठ बंगभूमि आज बांग्लादेश की ऐसी दशा है पूजा पाठ ध्यान सही है लेकिन साथ ही दुष्ट से निपटने की पात्रता भी होनी चाहिए
अन्यथा उसके कृत्य बहुत खराब होते हैं श्रीराम कथा में इसका बहुत विस्तार है दशरथ के राज्य में सब कुछ ठीक चल रहा है दशरथ स्वयं अत्यन्त बलशाली शक्तिसम्पन्न हैं उधर जनक भी आनन्द में हैं जनक से ज्ञान प्राप्त करने अनेक विद्वान् आते रहते हैं दक्षिण भारत में बाली सुग्रीव भी शक्तिसम्पन्न लेकिन उनमें राष्ट्र -बोध विलुप्त है शक्ति जगह जगह सिमटी हुई है ऐसी शक्ति जो जगह जगह सिमटी हुई हो दुष्ट के लिए वह भयानकता उत्पन्न नहीं करती
शक्ति की कल्पना और शक्ति की आराधना भारतीय धर्म की बहुत पुरानी परम्परा है और यह परम्परा शक्ति को मातृरूपा समझती रही
पुराणों और तन्त्रों में इसका बहुत विस्तार है
भगवान् रामकृष्ण परमहंस शक्ति के उपासक थे इसके पहले भी ऐसी परम्परा रही
जिस बंगाल से ऐसी शक्ति और भक्ति का अनन्त काल से प्रादुर्भाव होता रहा हो उस बंगाल में राक्षसों का तांडव कैसे प्रारम्भ हो गया विचारणीय है
शक्ति की उपासना के अर्थ सीमित होने के कारण ऐसा हुआ
अंग्रेजों ने हमें ज्यादा भ्रमित किया इन्होंने हमारे मन और मस्तिष्क को प्रभावित किया हमें सुविधा का लाभ दिखाया क्रियाशीलता शून्य की जब कि संसार सक्रियता का नाम है
शक्ति ब्रह्मतुल्य है शक्ति क्रियाशील भाग है ब्रह्म तत्त्व है वह शक्ति के माध्यम से क्रिया करता है शक्ति व्यक्त है ब्रह्म अव्यक्त
सार में कहें तो हम शक्ति की अनुभूति करें और उसे अभिव्यक्त करें
प्रयास करें आसपास दुष्टों का परिवेश भयग्रस्त रहे स्थान स्थान पर शक्ति केन्द्रों की आवश्यकता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें