शक्ति की अनुभूति का संदेश
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१११० वां सार -संक्षेप
हनुमान जी हमारे इष्ट हैं उनकी शक्ति और भक्ति, उनके संयम और उनके संहारकारी स्वरूप को अपने भीतर अनुभव करने का हमें अभ्यास करना चाहिए
सीता जी ने संदेह प्रकट किया
मोरें हृदय परम संदेहा।
कि तुम्हारे जैसे वानर उस दुष्ट को कैसे पराजित कर पाएंगे
तो
सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥4॥
उनका सोने के पर्वत जैसा अत्यंत विशाल शरीर था जो युद्ध में शत्रुओं को भयभीत करने वाला, अत्यंत बलशाली और वीर था
इन विषयों पर यदि हम ढोलक बजाते रहेंगे कथा सुनते सुनाते रहेंगे और अविश्वास के साथ भक्ति करेंगे तो हम भीतर से दुर्बल बने रहेंगे
प्रातःकाल यह आत्मबोध का समय है निम्नांकित
पंक्तियों के संदेश को हम बिना भ्रमित हुए समझने की चेष्टा करें कि आपद धर्म क्या है
उठो हथियार साजो हो कलम के साथ पिस्टल भी
गगन के तारकों के मध्य भरने लगे पुच्छल भी
अहिंसा एक सद्गुण किन्तु कायरता नहीं होती
बनो असिपर्ण जैसे रह न जाओ सिर्फ मुद्गल ही
हम स्वयं सन्नद्ध रहें साथ ही हमारे साथी भी
दुष्टों का संहार करने वाले भगवान् राम और भगवान् शिव का ध्यान रखें शक्ति शील सौन्दर्य भगवान् राम का स्वरूप है
प्रायः क्रान्तिकारी, क्रान्तिकारी लेखक अपने साथ हथियार रखते थे
खल को हमारी शक्ति का अहसास होना चाहिए शक्ति होने पर समय पर उसका सदुपयोग हो जाता है
शिक्षक शिक्षा दे रहा हो और उसमें शक्ति नहीं तो शिक्षक कैसा
आत्मबल और शरीरबल दोनों आवश्यक है
चारों आयाम शिक्षा स्वास्थ स्वावलंबन सुरक्षा सही अर्थों में समझें
खानपान सही रखें प्राणायाम योग आदि आवश्यक हैं
आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुई बैठक की चर्चा की
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें