13.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११११ वां सार -संक्षेप

 प्रभाव में  अभाव में स्वभाव सम बना रहे 

हृदस्थ भाव शक्ति शौर्य से सदा घना रहे 

कि हीनभाव मनस् में सदैव ही मना रहे 

स्वतंत्र ध्वज अनंत में फहर फहर तना रहे।


प्रस्तुत आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का  आज श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  13 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११११ वां सार -संक्षेप


समय की उथल- पुथल प्रारम्भ है भिन्न भिन्न प्रकार के विचार, सूचनाएं भावना से भरे हुए व्यक्तियों के मनों को उद्वेलित कर देती हैं और जो शक्ति शौर्य की अनुभूति करते हैं उन्हें आंदोलित कर देती हैं


जो उद्वेलित होकर निठल्ले बैठ जाते हैं वे भावुक भावक तो होते हैं किन्तु शक्ति -अनुभूति के अभाव में व्याकुल भी रहते हैं व्याकुलता व्यक्ति को दुर्बल बनाती हैअतः हमें उपाय खोजने चाहिए कि इस स्थिति में हम देशभक्त क्या कर सकते हैं

हमारे आसपास ही संकट आ जाए तो हम किस प्रकार उससे निजात पा सकते हैं इस पर विचार करें और ऐसे विचार व्यवहार में परिवर्तित हों

 हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

हमें आत्मबोध रहे परिस्थितियों की जानकारी भी रखें सत् का संवर्धन करें असत् का परित्याग करें 

हमें रामत्व की अनुभूति हो इसका प्रयास करें 


विदेश देश में विषाक्त बीज रोज बो रहा, 

स्वदेश का जवान रैन चैन  नींद सो रहा

समाज हिन्दुदेश का न हँस रहा न रो रहा 

विभव विलास बीच शौर्य युक्त भाव खो रहा।



श्रीरामचरित मानस जब रची गई तो भी विषम परिस्थितियां थीं तुलसीदास ने समाज जागरण की आवश्यकता समझी उनके मन में वह उत्साह जागा कि भगवान् राम का वह चरित्र प्रस्तुत किया जाए जो समाज को शक्ति शौर्य की अनुभूति कराए समाज को संगठित करा जाए इसका अनुभव कराए 

संगठन के महत्त्व की अनुभूति कराए व्यक्ति को संसार -समर जीतने का हौसला प्रदान कराए 

तुलसीदास जी ने हर सोपान का प्रारम्भ संस्कृत के छंद से किया और हर सोपान का अंत शिक्षाप्रद दोहे छंद से किया लंका कांड के अंत में है


समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।

 बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥ 


 जो व्यक्ति भगवान् राम की समर विजय संबंधी लीला का श्रवण करते हैं, उनको भगवान् नित्य विजय, विवेक और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं॥

विश्वामित्र को न जनक उपयुक्त लगे न दशरथ 

उन्हें राम उपयुक्त लगे साथ में लक्ष्मण भी उपयुक्त लगे 

भगवान् राम में जो शांति की अवधारणा है उसे उद्वेलित करने का कार्य समय समय पर लक्ष्मण करते हैं वे  प्रभु राम के अन्तःकरण में समय समय पर आवेश उत्पन्न करते हैं आचार्य जी ने परिणय -यज्ञ की चर्चा की जब जनक निराश हो 

गए उन्हें धरती वीर विहीन लगी 

उस समय भी लक्ष्मण ने यही चेष्टा की 

 माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें। रदपट फरकत नयन रिसौंहें॥


रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥

कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुलमनि जानी॥


रघुवंशियों में से कोई भी जहाँ  विद्यमान होता है, उस समाज में ऐसे वचन कोई नहीं कहता  जैसे अनुचित वचन  जनक ने कहे हैं तब जब रघुकुल शिरोमणि राम उपस्थित हैं 

शेषावतार लक्ष्मण जी को शक्ति लगी उपचार हुआ स्वस्थ हुए और फिर मेघनाथ का सामना करने को तैयार हो गए 

भयभीत नहीं हुए

हम सभी में भफ़्वान् का अंश है हम अणु आत्मा हैं हम निराश हताश न रहें चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शुद्धाद्वैत की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें