16.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१११४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१११४ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य यही है कि हम जीवित और जाग्रत रहें सचेत रहें साथ ही संगठित सुगठित सन्नद्ध रहने का प्रयास करें 

परिस्थितियों का रोना न रहे इसके लिए प्रयत्नशील रहें हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें ताकि मनुष्य का जो जीवन हमें मिला है वह सनाथ रहे 

स्वयं ही आत्मबल -परीक्षा का वरण करें तो आनन्द ही आनन्द है 

इन संप्रेषणों के शास्त्रीय वचनों की महत्ता तभी सिद्ध होगी जब उन्हें हम व्यवहार में उतारें राम का रामत्व सीखें 


आचार्य जी ने बताया कि बचपन से ही उन्हें संघ के प्रचारकों का स्नेह मिला अद्भुत परिस्थितियां आईं तो आचार्य जी शाखा पर जाने लगे पहले प्रचारक श्रद्धेय कृष्ण चन्द्र भारद्वाज जी बार बार प्रयत्न करते थे कि आचार्य जी शाखा पर जाने लगें लेकिन आचार्य जी नहीं जाते थे 

शाखा पर श्री श्याम लाल जी से मुलाकात हुई 

श्री श्यामलाल जी बाद में सेना में चले गए

 


जब सन् १९६० में तत्‍कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई भारत के दौरे पर आए थे उस समय आचार्य जी बी एन एस डी में थे जहां चीनी प्रधानमन्त्री के भारत दौरे के कारण हिन्दी चीनी भाई भाई नारे वाले बहुत से पोस्टर लगे थे



२० अक्‍टूबर १९६२ को भारत और चीन के बीच जंग का आगाज हो गया 

सूचना मिली श्री श्यामलाल जी शहीद हो गए घर में मातम छा गया 

त्रयोदशी संस्कार भी हो गया 

अचानक एक दिन श्यामलाल जी आ गए सभी में हर्ष की लहर दौड़  गई 

उन्होंने एक संस्मरण बताया उनके पास कारतूस खत्म हो गए दो चीनी सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया बाद में उन दोनों को श्यामलाल जी ने खाई में गिरा दिया बचते बचाते श्यामलाल जी अपनी यूनिट में पहुंच गए जब कि वहां भी उनके गायब होने की सूचना थी हर्षोल्लास का वातावरण बन गया 

और फिर वे अपने घर पहुंच गए 

उनका कहना था भारत के अतिरिक्त किसी भी सेना के नौजवान बहादुर नहीं होते वे केवल हथियारों से लैस होते हैं 

भारत देश शौर्य  वीरता पराक्रम त्याग तपस्या संयम का देश है और व्यक्ति व्यक्ति में इसका समावेश है लेकिन दुःखद है शीर्ष पर ऐसे लोग बैठते रहे हैं जिनसे घृणा होती है २०१४ में प्रकाश की झलक दिखी 

उत्साह आया कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगा ये विकार  भरने वाले लोग स्वार्थी लोगों की खोज में रहते हैं 

इतना अद्भुत देश और एकांगी अध्यात्म के अंधकार से घिर गया 

अब चैतन्य जाग्रत हो रहा है सैनिकों को हम आश्वस्त करें कि हम उनके साथ हैं उनके परिवार के रक्षक हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नागा संप्रदाय का नाम क्यों लिया  अवधेशानंद ने क्या कहा आदि जानने के लिए सुनें