पन्द्रह अगस्त का दिन कहता-आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाक़ी हैं, रावी की शपथ न पूरी है॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी / एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१११३ वां* सार -संक्षेप
आज १५ अगस्त है इसे स्वतन्त्रता दिवस कहा जाता है किन्तु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों के साथ जीवन जीने वाले और देश को प्रथम मानने वाले हम लोग इसे स्मरण दिवस के रूप में मनाते हैं देश का विभाजन देशवासियों की दुर्बलता और भय के लक्षण हैं दीनदयाल जी कहते थे हमारे जीवन की तरह ही राष्ट्र का जीवन भी होता है आर्ष -चिन्तन भी यही था
तात्विक रूप से देखने पर हम अपने को आत्मा कहते हैं हम अपने भीतर अवस्थित चैतन्य को आत्मा कहते हैं उसी प्रकार राष्ट्र की चैतन्य अवस्था होती है जिसे चिति कहा जाता है चिति ही दूसरे शब्दों में चैतन्य है चैतन्य राष्ट्र वही है जो अपनी परम्परा, अपनी भूमि,अपने विश्वासों पर बिना भय और भ्रम के जीवन यापन करे
इस विश्वास की प्राप्ति पारंपरिक स्वाध्याय की विधि व्यवस्था के द्वारा होती है प्रथम स्वतन्त्रता दिवस के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता गांव गांव जाकर कह रहे थे यह प्रसन्नता का दिन नहीं चिन्ता का दिन है क्योंकि हमारा देश कट गया
इस कारण हम लोग इस दिन इसे अखंड भारत दिवस के रूप में मानसिक रूप से पूजन करते हुए मनाते हैं
आध्यात्मिक जीवन जीने वाले क्रान्तिकारी महर्षि अरविन्द कहते थे एक दिन हम इस स्वरूप को पाकर रहेंगे
अपने हिसाब से सभी को अधिकार प्राप्त होते हैं हमें उनकी अनुभूति की आवश्यकता है धरती पर हमारा भी भार है हम अपने कर्तव्यों की अनुभूति करें अपने परिवेश को जानें खोखले चिन्तन से बचें हम जहां हैं वहीं संगठन करें हम छोटा संकल्प ही सही उसे लेकर कुछ करें
भय से बचें भय हमें दुर्बल बनाता है
हम अपने घर में अखंड भारत का चित्र लगाएं
जो जहां है वहीं की समीक्षा करे
आत्मबल की स्वयं ही परीक्षा वरे
संगठन -भाव क्षण भर न ओझल रहे
देश के प्रेम की शीश शिक्षा धरे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने व्यंग करने वाला कौन सा प्रसंग बताया किसे चोट लग गई थी जानने के लिए सुनें