17.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११५ वां सार -संक्षेप

भारत महान भारत महान 

जग गाता था गा  रहा नहीं गाएगा फिर पूरा जहान


 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११५ वां सार -संक्षेप


एक भावना को भीतर संजोकर अपना विद्यालय खुला था वह भावना जाग्रत हुई थी एक हृदयविदारक घटना के घटने से 

अत्यन्त शान्त सौम्य एक व्यक्ति,जो राष्ट्र के गीत गाता हुआ आगे बढ़ रहा था और अपने लिए कुछ नहीं कर रहा था,एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल जी की हत्या हो जाती है


सन् १९७० में विद्यालय खुला  और जुलाई १९७१ में सदाचार प्रारम्भ हो गया और यह क्रम आज तक चल रहा है

अपनी शक्ति बुद्धि विचार और व्यवहार को परिमार्जित करने के लिए, भक्ति के साथ शक्ति के सामञ्जस्य को समझने के लिए, कर्मशील योद्धा बनने के लिए, अपने लक्ष्य और लक्ष्य के अर्थ का संज्ञान लेने के लिए,अपना और अपनों का भय और भ्रम दूर करने के लिए,नई पीढ़ी को जगाने के लिए और अतिचार देखकर अपनी छाती अड़ाने का उत्साह पाने के लिए ये सदाचार संप्रेषण आवश्यक हैं 


कर्म का उत्साह भावों का समन्दर साथ में 


भक्ति- पथ पर पांव खरतर शूल दायें हाथ में


 ज्ञानगरिमा से प्रमंडित भाल मानस शान्त हो 


और अपना लक्ष्य अन्तःकरण में निर्भ्रान्त हो 


हे प्रभो इस जिन्दगी को बस यही वरदान दो 


लक्ष्य -पथ से प्रेम हो लक्ष्यार्थ का संज्ञान हो l


लेखन मन के भावों का प्रवाह है किसी भी तरह का लेखन हो उसे संजोकर रखें

आचार्य जी ने अधिवेशन के लिए क्या परामर्श दिया गुरुकुल कैसे होते थे जानने के लिए सुनें