सदा धर्मानुरागी कर्म कौशल के सहित रहता
नहीं वह क्षुद्र स्वार्थों के लिए कुछ भी कहीं कहता
न संयम छोड़ता किंचित् न धीरज को कभी तजता
सदा ही शौर्यमय निष्काम रहकर राम को भजता
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
१११७ वां सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि
हमारे भाव भक्ति विचार तात्विक अंश राष्ट्रोन्मुख हों रामोन्मुख हों और कर्मोन्मुख हों
पत्रकारिता में भगवान् नारद मुनि हमारे आदर्श हैं उन्होंने स्थान- स्थान पर इस संसार के उतार चढ़ाव के लिए जो भी समाचार संप्रेषित किए उन पर विवेकपूर्ण ढंग से दृष्टिपात करने पर हम पाएंगे कि सृष्टि संचालन में उनकी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका है
आधुनिक काल में गणेश शङ्कर विद्यार्थी,बाबू शिव प्रसाद गुप्त जिन्होंने काशी विद्यापीठ की स्थापना की और 'आज' नाम से एक राष्ट्रवादी दैनिक पत्र निकाला आदि उच्च कोटि के पत्रकार रहे हैं
लेकिन कुछ ऐसे स्वार्थी लंपट विकृत मानसिकता के लोग भी हैं जो इसे कलंकित कर रहे हैं
समय परिवर्तनशील है वह न बुरा है न अच्छा समय समय है समय के साथ मनुष्य की वृत्तियां जब तालमेल नहीं बैठाती विकृतियां वहीं जन्म लेती हैं आचार्य जी ने इसे moving staircase और train के उदाहरणों से स्पष्ट किया
जब हम कहते हैं कि समय खराब है तो इसका अर्थ है हमारा चिन्तन पंगु है कर्म का सिद्धान्त कुंठित है हम समयानुकूल विचार करने में असमर्थ हैं
आत्मशोध न करते हुए और आत्मबोध की अनुभूति न करते हुए हम दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं हम क्षुद्र स्वार्थों की भेंट चढ़ जाते हैं
इनसे बचने के लिए हमारे यहां पूजा का विधान है
आज धर्मबन्धन में बांधने का प्रतीक रक्षाबन्धन का पर्व है पुरोहित भी रक्षा सूत्र बांधते हैं यह पुरोहितों द्वारा किया जाने वाला आशीर्वादात्मक कर्म है हमारा लक्ष्य है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः पुरोहित वे हैं जो अपने यजमान का अपने राष्ट्र का हित रखते हुए आगे चलते हैं अपना हित नहीं
हल्दीघाटी पुस्तक में पुरोहित के आत्मबलिदान का प्रसंग अत्यन्त मार्मिक है
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वां प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल: ।।
मध्य युग में रक्षाबन्धन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गया था
हम एक दूसरे के राखी बांधें और एक दूसरे की रक्षा का संकल्प लें यही संगठन का स्वरूप है
आचार्य जी ने विख्यात धर्मशास्त्री रघुनन्दन भट्टाचार्य की चर्चा करते हुए स्मार्त और भागवत में अन्तर स्पष्ट किया
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अधिवेशन में राष्ट्र धर्म का हम सामूहिक चिन्तन करें और यह आवश्यक भी है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बंगाल का उल्लेख क्यों किया,भैया पंकज श्रीवास्तव जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें