प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११०१ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है हमें राष्ट्र और समाज के प्रति अपने दायित्व की समझ प्राप्त होती है
जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।
श्री राम एक अवतार हैं किसी के अनुसार वे विष्णु के अवतार हैं तुलसीदास जी ने श्री राम को परमात्मा का अवतार माना है ये मनुष्य की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुसार वर्णन होते हैं राम अंशों में सर्वत्र अपना प्रवेश कर लेते हैं
धर्म का भ्रम जितने अधिक लोगों में हो जाता है उतना ही धर्म का स्वरूप विकृत होने लगता है भौतिक वस्तु के प्रति भी सचेत सजग न रहने से उसकी विकृति परिलक्षित होती है जैसे मां गंगा को हम शुद्ध करने का प्रयास करते हैं यह भौतिक संसार की प्रकृति है अध्यात्म पूर्ण रूप से शुद्ध आत्मिक अनुभूति है यह अनुभूति ज्ञान के उन चक्षुओं को खोलती है जिनको संसार देखने की आवश्यकता नहीं है
सूरदास नेत्रविहीन थे लेकिन वे अद्भुत ज्ञान के भंडार थे उनमें अद्भुत सांसारिक समझ भी थी उन्हें भी संसार दिखाई दिया जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी भी इसी तरह के उदाहरण हैं
भारतवर्ष के ये यथार्थ हैं हमें इन पर विश्वास करना चाहिए भारतवर्ष में हमारा जन्म हुआ है यह हमारा सौभाग्य है क्योंकि यह धरा अद्भुत है
आचार्य जी कहते हैं मन की साधना हेतु नित्य हमें कोई नियम बांधना होगा आत्मीयता का विस्तार भारत की संस्कृति का सार है तभी हम वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं आत्मीयता के विस्तार में कृत्रिमता नहीं आनी चाहिए
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हमारी दिनचर्या इस प्रकार की हो जिसमें हम आत्म की अनुभूति हेतु भी समय निकाल लें
आत्म की अनुभूति का अर्थ है अध्यात्म और वह भी शौर्य प्रमंडित
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशु शुक्ल जी का नाम क्यों लिया आज आचार्य जी कहां रुके हैं जानने के लिए सुनें