21.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११९ वां सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हम ज्ञान का संवर्धन तो करते ही हैं साथ ही शक्ति का संवर्धन भी करते हैं संगठन की महत्ता को समझने लगते हैं समाज -ऋण के मोचन का प्रयास करते हैं हम भ्रमित होने से बचते हैं 

अपने सामाजिक चैतन्य को जाग्रत करते हैं 

अपने यहां विद्वानों वीरों भक्तों संतों शूरवीरों ज्ञानियों तपस्वियों की एक लम्बी परम्परा रही है लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षा में विकृतियों के कारण हमें इनके बारे में पढ़ाया नहीं गया 'हिन्दी को मराठी संतों की देन' ( विनय मोहन शर्मा ) की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि महाराष्ट्र में वैष्णवों को भागवत कहते हैं वैष्णव का अर्थ है भक्त केवल विष्णु पूजक नहीं और ये समर्पण भाव से चलते हैं 

स्मार्त स्मृतियों के आधार पर चलते हैं 

महाराष्ट्र में १४ वीं शताब्दी में भागवत धर्म का बहुत अधिक प्रचलन हुआ भागवत धर्म मराठी में लिखा गया भक्ति आंदोलन संत ज्ञानेश्वर ने प्रारम्भ किया उनका श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित मराठी भाषा में  १३४७ विक्रमी में रचित ज्ञानेश्वरी नामक ग्रंथ एक आदर्श ग्रंथ है

भक्तमाल में भी संत ज्ञानेश्वर का वर्णन है 

ज्ञानेश्वर के स्वयं नाथ संप्रदाय में दीक्षित होने के कारण उनके इस अद्भुत ग्रंथ में  गोरखनाथी परम्परा के यत्र-तत्र सङ्केत मिल जाते हैं।गोरखनाथ मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे


हमारी भारतीय संस्कृति गुरु शिष्य परम्परा पर आधारित है एक सिखाता है एक सीखता है 

महारष्ट्र में अनेक संत हुए उन्हीं में एक हैं समर्थ गुरु रामदास 

इन संतों ने अभंगों और अन्य मराठी छंदों में जितनी रचनाएं की हैं उन सबमें भक्ति के माध्यम से शक्ति की उपासना परिलक्षित होती है और हमें इसी से दूर रखा गया ताकि हमें आत्मबोध न हो सके हम अपने देश अपनी शक्ति अपनी भाषा को सही प्रकार से न जान सकें

दीनदयाल विद्यालय को प्रारम्भ करने का कारण ही यह था कि हमें आत्मबोध हो सके देशभक्ति की भावना हमारे अन्दर जाग्रत हो सके संयम समर्पण भक्ति शक्ति स्वाध्याय राष्ट्रार्पित हो सके पं दीनदयाल उपाध्याय इसी के पर्याय थे उन्होंने गरीबी में अमीरी का दर्शन किया देश को झंझावातों से निजात दिलाने के लिए वे कृतसंकल्प थे 

आज भी वैचारिक संघर्ष शारीरिक संघर्ष चल रहे हैं हमें अपनी भूमिका पहचाननी होगी प्रवचन की अपेक्षा कर्म में विश्वास रखें 

प्रवचन महत्त्वपूर्ण तभी है जो शक्ति की अनुभूति कराए प्रज्वलित ज्वाला बनकर भभक उठे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण भागवत जी भैया विवेक भागवत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें