22.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२० वां सार -संक्षेप

 समंदर की सदा बे रोक टोके गूंजती रहती 

धरा की घ्राण इन्द्रिय प्रिय अप्रिय सब सूंघती रहती 

ये भारत देश है इसका निवासी सर्ववेत्ता है 

इसी से चेतना इसकी कि प्रायः ऊंघती रहती l



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२० वां सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम निःस्वार्थ भाव से तेजस्विता के साथ राष्ट्र -सेवा में सन्नद्ध हो सकें 

नई पीढ़ी हमें आशान्वित करे इसके लिए उसके भय और भ्रम को दूर करने का हम सामर्थ्य पा सकें सनातनत्व की महत्ता को समझ सकें क्योंकि सनातन धर्म ही वैश्विक धर्म है अपना देश ही संपूर्ण विश्व है अपने कार्य व्यवहार को करते हुए अपने देश अपने धर्म को गहराई से जान सकें कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् की परिकल्पना को साकार कर सकें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हो सकें

सिद्धि की ललक उत्पन्न कर सकें


गुरु -शिष्य परम्परा के उदाहरणों में भगवान् राम और लक्ष्मण का विश्वामित्र के साथ जाना, चन्द्रगुप्त का चाणक्य के साथ भावनात्मक समर्पणात्मक संपर्क होना उल्लेखनीय हैं


जिस प्रकार मानस में दोहे चौपाई हैं उसी तरह गीतावली में भिन्न भिन्न रागों के पद हैं इसी में बाल कांड के सौवें पद में 


ऋषि नृप -सीस ठगौरी-सी डारी।

कुलगुर, सचिव, निपुन नेवनि अवरेब न समुझि सुधारी।1।


सिरिस-सुमन-सुकुमार कुँवर दोउ, सूर सरोष सुरारी।

पठए बिनहि सहाय पयादेहि केलि-बान-धनुधारी।2।

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आचार्य जी इसका वर्णन करते हुए बता रहे हैं कि मां कौशल्या सोच रही हैं कि विश्वामित्र प्रभावित करके मेरे बच्चों को ले गए..

संकल्पी शिक्षकों को लेकर अपना दीनदयाल विद्यालय १८ जुलाई १९७० को प्रारम्भ हुआ और उसमें छात्रावास भी खुल गया कई ऐसे अवसर आए जो भावुक कर देते हैं कई छात्र अपना घर छोड़ यहां रहने के लिए आने पर रोने लगते थे कई अभिभावक भी रोने लगते थे छात्र विद्यालय छोड़कर जाने पर भी रोते थे


जब ऐसे क्षण याद आते हैं तो बहुत भावुक कर देते हैं आचार्य जी को ऐसी ही अनुभूतियां होती हैं छात्रों को छात्रावास में परिवार जैसा व्यवहार मिला

जैसा कहा जाता है गुरु ही माता है पिता है मार्गदर्शक है वैसा ही विद्यालय के शिक्षकों ने सिद्ध किया 


मां गंगा का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अपने भावों को परिमार्जित करें विचारों को परिष्कृत करें संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए नित्य अभ्यास करें हम भारत मां के सपूत हैं इसके लिए अपने कर्तव्य को जानें 

दुष्टों को अपने विचारों कार्यों से पराभूत करें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को जानें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने देवेन्द्र सिकरवार का नाम क्यों लिया चारबाग और गोरखपुर का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें