सदा संकल्प सबके सर्वविध पूरे नहीं होते
मगर सब सोचते रहते उन्हीं को जागते सोते
ये दुनिया हर अधूरे काम का ही नाम है प्यारे
इसी में तैरना सबको लगाना है यहीं गोते।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
११२१ वां सार -संक्षेप
मनुष्य का भावनात्मक पक्ष अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है यह ईश्वर से प्रदत्त एक वरदान है इस शक्ति को जानने के लिए पहले शरीर को साधना पड़ता है
शरीर को बिना बोझिल किए शक्ति की हम अनुभूति कर सकें तो इससे अच्छा क्या हो सकता है
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अध्ययन स्वाध्याय करें,शरीर को बोझिल न बनाएं, परिस्थितियों से सामञ्जस्य बैठाकर शरीर की साधना का प्रयास करें,मन को नियन्त्रित करें,ध्यान और धारणा का प्रयास करें
आचार्य जी ने विज्ञान अध्यात्म सङ्गीत में गति रखने वाले सुप्रसिद्ध लेखक सुरेश सोनी जी की पुस्तक भारत अतीत वर्तमान और भविष्य का उल्लेख किया आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इसका अध्ययन अवश्य करें
इससे हमें आत्मबोध होगा
हम भ्रमित क्यों हुए हम व्यामोहित क्यों हुए इसका चिन्तन आवश्यक है
भारत में अंग्रेजी क्या खोया क्या पाया (तुलसीराम ) भी महत्त्वपूर्ण है
इसी तरह वेद उपनिषदों स्मृतियों आदि पर आधारित श्रीरामचरित मानस का अध्ययन करें
फिर स्वाध्याय
तब चिन्तन तो हम देखेंगे कि चिन्तन एक ही स्थान पर जाता हुआ दिखेगा
यह संसार है हम संसारी पुरुष हैं संसार का अपना व्यवहार है संसार हमसे छूटता है यानि शरीर हमसे अलग होता है इसका अर्थ है हम शरीर नहीं हैं हम मन नहीं हैं न बुद्धि हैं
हम हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
आचार्य जी ने इस प्रकार स्वाध्याय का अर्थ स्पष्ट किया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा अमित भैया का नाम क्यों लिया आधुनिक ऋषि पूज्य गुरु जी का उल्लेख क्यों किया स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के विषय में क्या बताया
भारत की अमूल्य संपदा क्या है आगे की पीढ़ी क्षमतावान कैसे बनेगी जानने के लिए सुनें