प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
११२२ वां सार -संक्षेप
संसार में रहते हुए संसार को समझते हुए सांसारिक कर्मों को करते हुए यदि चिन्तन में किसी क्षण यह झलक जाए कि हम संसार नहीं हैं हम सार हैं तो यह अत्यन्त सुखद अनुभूति का विषय होता है
वास्तविकता भी यही है
हमारी भाषा भाव इतिहास भूगोल विश्वव्यापी हैं
देववाणी संस्कृत अत्यन्त गहन तात्विक बहुअर्थी विश्वसनीय भाषा है हिन्दी के साथ अन्य भाषाएं इसकी दुहिताएं हैं
आत्मशक्ति की अनुभूति न होना हमें भ्रमित करता है जितना अधिक भ्रम होगा उतना अधिक भय व्याप्त होगा
इसी कारण हम कमजोर भी दिखेंगे और दुष्ट हमें रौंदने की चेष्टा करेंगे
वास्तव में अध्यात्म को न समझने के कारण हम भ्रमित रहते हैं अध्यात्म मात्र पूजा पाठ नहीं है
सदा विश्वासपूर्वक हर कदम आगे बढ़ाना है
मगन मन राह में चलते हुए यह गुनगुनाना है
कि भारतवर्ष में ही जन्म अगणित बार देना प्रभु..
भय की भ्रामक भावना के प्रचार से हम बचें
रामत्व और कृष्णत्व तत्व शक्ति विश्वास हैं हम झंझाओं का सामना करने के लिए रामत्व और कृष्णत्व की अनुभूति करें संगठित भी रहें राम और कृष्ण के साथ संयुत कथाएं हमारे विश्वास में वृद्धि करती हैं
महाबली रावण जिससे सारा संसार त्रस्त है दैवीय शक्ति भी व्याकुल हैं उसे मारने के लिए भगवान् राम के कार्य देखने लायक हैं इसे सबसे अनुभव किया राजा राजर्षि ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने जिनके कायल वशिष्ठ भी हैं
राक्षसों के बढ़ते प्रकोप से विश्वामित्र आहत थे
विश्वामित्र को समझ में आया कि राम और लक्ष्मण योग्य हैं जो राक्षसों का संहार कर सकते हैं
गुरुत्व का अनुभव करने पर व्यक्ति अपनी शक्ति बुद्धि विचार विश्वास तप त्याग समर्पण अगली पीढ़ी को सौंपना चाहता है आचार्य जी भी यही कर रहे हैं ताकि हम अपनी शक्तियों को पहचाने अपने धर्म अपनी भाषा अपनी परम्पराओं से प्रेम करें अध्यात्म को शौर्य से प्रमंडित करने की अनिवार्यता को समझें
आचार्य जी ने भगवान् आदि शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए बताया कि आत्मानुभूति करने पर हम निराशा हताशा से दूर रहते हैं हम उत्साह से लबरेज हो जाते हैं
जो भी कार्य करें उसे भगवदर्पित समझें यही गीता ज्ञान है मानस का ज्ञान है यही वैदिक ज्ञान है
अपनी युगभारती की मनोवृत्ति यह रहनी चाहिए कि
दसों दिशाओं से आ जाएं दल बादल से छा जाएं
उमड़ घुमड़ कर इस धरती को नंदनवन सा सरसाएं
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि जिन्होंने स्वावलंबन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है ऐसे लोगों को हम अवश्य खोजें हमें ऐसे लोगों का सम्मान अवश्य करना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रदीप त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें